यथार्थ जीवन

यथार्थ जीवन
चले गए।भोर के पाँच बजे रहे थे।कल रात को बड़े बेटे से कह रहे थे,सेमिया खाने का मन कर रहा है। आधी रात में ठंड लग रही है, कहने पर उनकी पत्नी ने चादर ओढ़ा ली थी।सुबह उठकर छोटी बेटी गीता नियमित स्कूल जा रही है या नहीं, पूछ रहे थे।फिर वह चले गए।
                  कुछ क्षण पहले मेडिकल वार्ड के बिस्तर पर थे।अब नहीं हैं।दोनों बड़ी-बड़ी स्थिर आँखें,गोल चेहरा, अचल शरीर। कृतंक दाँत दोनों टूट गए थे।भीतर के दो-तीन दांत दिखाई दे रहे थे।खैनी और बीडी के धुएं से काले पड़ गए थे।मुँह के चारों तरफ एक मक्खी उड़ रही थी।उड़ती रहे।थक जाने से चली नहीं जाएगी?
                   सुबह से इस तरह आकर भूल हो गई।धोती-कुर्ता धोबी के घर से कल ही आया था। आज मालभाई शव-वाहक नहीं बनने से भी श्मशान तो जाना पड़ेगा।मतलब फिर से एक बार ये कपड़े धोबी के घर जाएंगे।आने में लगेंगे फिर सात दिन।अर्जेन्ट पचास पैसा: कौन संभाल पाएगा? आर्डिनरी में पच्चीस।हाथ से धोकर इस्त्री करने देने पर भी बीस पैसे।इन पैसों से दो सिगरेट सात बीड़ियाँ आ जाएगी।
खबर पाकर इतना विह्वल हो गए क्यों? कृतिवास बाबू के साथ ऐसा मेरा रिश्ता भी क्या था? पड़ोसी थे। सुबह अपने नाती को भेज देते थे अखबार माँगकर ले आने के लिए। कभी-कभी, गली के अंत में भेंट होने से,हंस-हंस कर पूछ रहे थे: क्या? और सब अच्छा है न? इतना ही तो! उनकी तबीयत खराब हो गई, खबर मिली लेकिन मैं भूल गया। लेकिन उनके चले जाने की खबर पाकर दौड़कर आ गया क्यों? जिंदा रहना,किसी मनुष्य की और खबर नहीं रहती है।मर जाना ही खबर। सच में।
                  सुना था। सुना था डॉक्टरों को रोग पकड़ में नहीं आया। B1, B6, B12 अथवा लीवर एक्स्ट्राक्ट अथवा बी कॉम्प्लेक्स इंजेक्शन देकर रोग का इलाज कर रहे थे। लेकिन इसी दौरान वह चले गए। आज का अखबार उन्होंने नहीं पढ़ा। अखबार में कितनी सारी खबरें। रुस के मिग विमान को चुरा कर भागा हुआ विमान चालक और जापान रूस का झमेला। कोहिनूर हीरे का वास्तविक हकदार भारत या पाकिस्तानइस विषय में तर्क-वितर्क। मुंबई में भीषण वर्षा, रेल यातायात बंद। किसिंजर ने कहा पाकिस्तान को अमेरिका परमाणु शक्ति और अस्त्र उत्पादन में मदद करेगा। और भी बहुत है। लेकिन उनका शरीर पड़ा हुआ है निर्जीव होकर। हाथ-पैरों की  चमड़ी ठंडी, अचल। अखबार पढ़ कर वे और उत्तेजित नहीं होंगे। चिंता भी नहीं होंगी। चावल के भाव के लिए नहीं। देश के भविष्य के लिए भी नहीं।
                  और कितनी देर? डॉक्टर नहीं हैं? आने से डेथ रजिस्टर में एंट्री की जाएगी। उसके बाद शरीर से कपड़ा उतार दिया जाएगा। मालभाई कहाँ है? अस्पताल के बाहर बांस बिक रहे हैं। कुछ खरीद लाओ। कितने लाओगे? चार या छह? जितने हो सके ले आओ। इस शहरी बाजार में इतने नियम कानून मानने से चलेगा? सुनिए सुनिए। पैसे हैं तो? हाँ, श्मशान के चांडाल लोग सब लकड़ी रखते हैं,वहाँ से खरीद सकते हैं। मैंने कुछ दिन पहले अर्थी उठाई थी। मेरे चाचा की मौत हो गई थी उस समय। पाँच छह वर्ष पहले की बात। भीषण वर्षा हो रही थी उस दिन। अच्छा-अच्छा रहने दो, तुम अब जाओ। हाँ,रस्सी खरीदना भूलना मत।
                   बेहेरा ने सफ़ेद चादर ओढ़ा दी उनके ऊपर।एक स्क्रीन खींच दिया चारों तरफ। मक्खी उड़ गई थी चादर के नीचे रह गई? देख नहीं सका।उनको और क्या फर्क पड़ता है? अब उनके लिए दुःख कहाँ या सुख कहाँ? इंजेक्शन लगने वाले हाथ में और दर्द नहीं होगा। छोटी बेटी को संगीत प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मिले कप को देखकर वह खुश नहीं होंगे। नाती को लेकर गोदी में सुलाने के लिए भी उनका मन नहीं होगा।
                  नर्स को पूछ कर पता करो,कितना समय हुआ होगा।ज्योतिषी की गणना के लिए जरूरी होगा,किस घर में दोष लगा है। प्रायश्चित करना पड़ सकता है। ठीक समय लिख कर ले आना। कौन जानता है,इहलोक में उसने क्या किया हैं या नहीं किया हैं।कितना धर्म, कितना पाप? अब कहाँ खत्म हुआ? हो सकता है यहाँ से आरंभ हो? लेकिन सच में आरंभ ?
                  हो सकता है। अपरा,प्रकृति,पंचभूत सब तो पड़े हुए हैं।अब तो,परा पुरुष जीवात्मा का काम है। कौन जानता है अब उत्तरायण के शुक्लपक्ष में देवलोक के ब्रह्मतत्त्व की प्राप्ति या दक्षिणायन के कृष्णपक्ष में पितृलोक की प्राप्ति। एक उलटे वृक्ष से पक्षी उड़ गया और दूसरे उलटे वृक्ष पर बैठेगा? कुर्ता फट गया इसलिए फेंक दिया? नए कुर्ते में पुरानी स्मृतियां मिट जाएगी? यही नियम है।हो सकता है।
                  कह रहे थे कभी-कभी समय मिलने पर अतीत की स्मृतियांअनुभूतियां। वह जब पहली बार नौकरी करने आए तो एक रुपए में मण चावल मिलता था उस समय। उनकी तनख्वाह थी पच्चीस रुपए मासिक।उसमें से वह घर को भेजते थे,भाई को पढ़ा रहे थे और खुद बहुत खुशी से रहते थे।स्वराजनाम उस समय ओड़िशा मुल्क में किसी ने सुना था? रूस के बारे में बहुत कम लोग जानते थे।यह था इस शताब्दी का बीसवां दशक।
                  उनके मालिक थे जॉन हार्डी।लोग कह रहे थे कि हार्डी साहब की साहिबा ने अपने हार का लॉकेट खो दिया है। बहुत खोजने पर भी मिला नहीं।अंत में साहब ने साहिबा को समझाया,लॉकेट खोने पर ज्यादा दुःख करने से क्या फायदा।आना-जाना लगा हुआ है।यह संसार का नियम है एक गया,दूसरा आएगा ।
                  लेकिन औरत जात है न। मन शांत होता है क्या? दो-तीन दिन तक खाना-पीना छोड़ दिया।  इतना सुंदर, इतना कीमती। कटक फिलिग्री-का कितना बढ़िया नमूना था,खुद ऑर्डर देकर बनवाई थी। मन दुःख नहीं होगा? एक दिन हमारे कृतिवास बाबू को साहब से भेंट करते समय बगीचे में मिल गया था। उन्होंने इसे साहब के सामने लाकर रख दिया तो साहब आश्चर्य हो गए।
                  यह काला आदमी इतना साधू? या इतना बड़ा बेवकूफ? हार्डी साहिबा गले चिपक गई कृतिवास बाबू के, खुशी से। साहब ने पूछा: क्या करते हो? कृतिवास बाबू ने  अपना दुःख बयान कर दिया। अवश्य झूठ-मूठ मिलाकर बहुत कुछ।
                  साहब खुश तो हुए। पचीस रुपए की तनख्वाह को बढ़ाकर तीस रुपए करवा दिया। उस समय तीस रुपए की कीमत की आज कल्पना करना भी असंभव हो जाएगी।
                  कृतिवास बाबू को वह हार्डी साहिबा इतना पसंद कर रही थी कि साहब के मरने के बाद उसके देश लौटने से पहले वह पुराना लॉकेट उसे देकर चली गई।कृतिवास बाबू ने उस लॉकेट को तोड़कर एक हार बनाया अपनी पत्नी के लिए।अभी वह हार बंधक पड़ा है किसी महाजन के पास।
                  तीन बेटे और तीन बेटियों का यह संसार था। दो बेटों की शादी करवा दी थी। बेटियाँ अभी बची हैं। उनकी शादी होने पर वह शांति से सांस लेंगे,कह रहे थे कृतिवास बाबू। कौन जानता था वह ऐसे चले जाएंगे दोनों बेटियों के भविष्य को अंधेरे में धकेल कर। दुनिया में कौन किसका होता है? छोटी बेटी को बिना देखे उनकी खाने की इच्छा नहीं हो रही थी।  पिछले साल स्कूल की फाइनल परीक्षा में फेल हुई थी, इसलिए उन्होंने इतनी बड़ी बेटी के ऊपर हाथ उठा दिया था। कितना रोए थे उसके लिए इस बुढ़ापे में। छोटी बेटी जो रोते-रोते मूर्छित हो गई कुछ देर पहले ही। कृतिवास बाबू का क्या हुआ? माया के कीचड़ में जितना लोटोगे,उतना लोटते ही रहोगे। कौन किसका है बोलो?
            क्या हुआ? इतना शोर-शराबा क्यों? चावल लाए हो? नयी हांडी एक खरीद कर लाओ। श्मशान में फिर से भात बनाना पड़ेगा। घी या झुणा कुछ लाओगे। बेहेरा लोग पैसा मांग रहे हैं क्या? लोग अस्पताल से अच्छे हो कर बक्शीस देकर खुशी से घर जाते है। तुम लोग सब गिद्ध हो क्या? मरने वाले के आत्मीय लोगों से बक्शीस लोगे? मेहतर क्या पाँच रुपया माँग रहा है? नहीं तो लाश नहीं छुएगा? पाँच रुपया क्या कम है? वह मत छुए। हम चार-पाँच आदमी बाहर निकलने से उठाकर नहीं जा सकते? डॉक्टर आए या नहीं? शीघ्र काम खत्म करने से मुक्ति मिलेगी। सुबह से एक कप चाय पी थी। नाश्ता भी नहीं किया हूँ अभी तक। जाना अच्छा नहीं रहेगा। जैसा भी हो ये सब बच्चे हैं। मैं ही सबसे उम्र में बड़ा हूँ, मुखिया। दिखावट नहीं करने से कैसे चलेगा? एक सिगरेट या बीड़ी मंगाने से होता।
                  खबर सुनकर ऐसे क्यों चला आया? पर जब जिंदा थे उनसे दूर था। क्या वाचाल थे वह? बूढ़ा वयस में और ज्यादा निःसंग होने के कारण और ज्यादा वाचाल हो गए थे। बात करने के लिए एक बार मिल जाता तो पास से उठने नहीं देते थे। बुढ़ापे के समय में मनुष्य कितना अकेला हो जाता है। उनकी पत्नी के साथ रिश्ता और कितना था? छोटी बेटी को इतना प्यार करते थे,हमेशा चाहते थेबेटी उनके पास बैठकर गप्प मारे। आजकल की बेटियाँ,वह फिर बूढ़ा बाप के पास बैठकर क्या गप मारेगी ?
                  अनेक बार मार्क किया है,उनके दरवाजे के पास अंधेरे की आड़ में रह कर उनकी छोटी बेटी एक लड़के से बात करती थी,शाम के समय।लड़का साइकिल के ऊपर खड़े रहता था,लड़की दीवार के कोने में छुप कर रहती थी।  क्या बात करते थे वे दोनों? फिल्म के बारे में, स्कूल-कॉलेज, दोस्तों के बारे में और प्रेम के बारे में? क्या पता! लेकिन उस शाम को कई बार खिड़की से देखा कृतिवास बाबू की कोठरी के भीतर। वह अकेले बैठे हुए थे।उनकी दोनों आँखें जैसे बहुत असहाय थी। जैसे वह सहन नहीं कर पाते थे निःसंगता की ज्वाला को।
                  लेकिन कभी भी पास जाकर नहीं बैठा था मैं।कई बार उन्होंने बुलाया  पीछे से: लेकिन अनसुना कर दौड़कर चला गया। लेकिन उनकी मौत की खबर सुन कर दौड़कर चला आया।
                  थोड़ी देर में पंचभूत का शरीर विलीन हो जाएगा। कितने कष्ट उठाए होंगे   माँ के पेट में इस शरीर ने। कितने रोग-बेरोग! कितने सुख-मौज! सब पीछे पड़े रह गए।सपने की तरह टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो गए। अब आग पर औंधे मुंह रख देने से भी कोई फर्क नहीं, चूँ तक की आवाज़ नहीं। थोड़ी देर पहले बात कर रहे थे इंजेक्शन लगी हुई जगह पर दर्द हो रहा है,सेक ठीक करना होगा या नहीं, डॉक्टर को पूछने के लिए लोग भेजने का बंदोबस्त कर रहे थे। हे जगन्नाथ,क्या लीला है आपकी। क्यों ऐसे खेल खिलाते हो हे,चकाडोला?
 कर्ण के पास एक दिन भगवान पहुँचे। अब्राहम के पास एक दिन खुदा पहुँचे। कहने लगे: मैं जो मागूँगा, दोगे?
कर्ण ने कहा,अब्राहम ने कहा : दूंगा।
भगवान ने कहा, “सौगंध खाओ, तभी मानूंगा
कर्ण ने कहा , अब्राहम ने कहा, “शपथ, शपथ, शपथ। तीन बार शपथ
भगवान ने कहा : मुझे तुम्हारे बेटे का खून दे सकोगे? सिर दे सकोगे तुम्हारे बेटे का?” कर्ण माया से ऊपर उठ चुका था,अब्राहम भी। वे लोग डर गए। हमारा पुराण कहता है,बाइबल भी। कुरान भी। लेकिन कृतिवास बाबू? वह उभर पाए? माया छोड़ पाए थे वह? बहुत सामान्य आदमी थे वह। बहुत साधारण। जीवन भर वह संसार के भार ढोते हुए चलते थे। अब्राहम या कर्ण कोई हो सकता है?
                  हो सकता है इसके बाद वह कुछ दिन फोटो बनकर झूलेंगे घर की दीवार पर। हो सकता है कुछ दिन फूलों की माला भी चढ़ाई जाएगी।उसके बाद धीरे-धीरे बंद हो जाएगी फूलों की माला चढ़ना। इतना नहीं,सूखे फूलों की माला को भी उनके ऊपर से निकालना लोग भूल जाएंगे। उनका फोटो पीला हो जाएगा। उनके नाम को याद करने को चेष्टा करेगा पुजारी,श्राद्ध के समय और एक ऐसा भी समय आएगा,एक दिन उस फोटो को अनावश्यक समझकर फेंक दिया जाएगा। पुजारी भी नहीं पूछेगा,उनका नाम श्राद्ध के समय,लेकिन पृथ्वी ठीक उसी तरह ही होगी। सूर्य,चंद्रमा निकल रहे होंगे। अखबार में होगी अनेक ताजी खबरें।बीमारी होने पर लोग अस्पताल जाएंगे। लेकिन कोई याद नहीं करेगा कि कृतिवास बाबू जैसा कोई आदमी था।  आह! बहुत साधारण मनुष्य की तरह जी रहा था। कौन याद रखेगा,बोलो?
                  तुम सब क्यों रो रहे हो? रोने से और क्या फायदा? उनका समय खत्म हो गया। खेल खत्म कर वह लौट गए। दुख इस बात का है कि उनके खेल की बात को कोई याद नहीं रखेगा। यही कि उनके वियोग में तुम्हारे मन दुःखी हो रहा हैदेखना कुछ दिन बाद ये दुःख भी फीके पड़ जाएंगे। अद्भुत है यह संसार का नियम। जाकर देखो,डॉक्टर आया या नहीं। डेथ-रेजिस्टर में सिग्नेचर करने पड़ेंगे,करके आओ। क्या करते हो? हुआ या नहीं? आः समय हो रहा है। अरे कपड़े उतार दो। नंगा होकर आया था,नंगा होकर जाएगा। आया था अपने पिछले जन्म का पाप-पुण्य को लेकर। साथ में कौन जाएगा? मध्य प्राच्य की युद्ध समस्या,हार्डी साहिबा का लॉकेट,छोटी बेटी जीत कर लाई होगी कप? कुछ नहीं। सपने की तरह क्षण भंगुर। जितने पुण्य किए होंगे,उतने ही ये सब अवास्तविक।  हाथ पैर तोड़ दो। और क्या जीवन है जो उसे कष्ट होगा। यह पंचभूत का घट है। मिट्टी में मिल जाएगा। कुछ क्षण के बाद अस्तित्व मिट जाएगा इस शरीर का। मातृगर्भ का वह बिंदु आज इतने बड़े निर्जीव शरीर में बदल गया। ठीक, ठीक उठाओ।
                 हरीबोल। बोलो सब:राम नाम सत्य है।बोलो! हरीबोल।खत्म हो रहा है।जिस शरीर को साठ-सत्तर वर्ष से उठाकर आए थे,मिट जाएगा एक पल में। लेकिन दुख कष्ट संग्राम इस शरीर के लिए थे। संसार के साथ जुड़ने से बढ़े,परिवार बढ़ा,इस शरीर के लिए। बड़ा बेटा अब मुखाग्नि देकर दूर बैठा है। इस शरीर ने तो उसे बनाया था। अब देखो कैसे मिटता जा रहा है। क्या लाभ था इतनी माया के दलदल में फंसने का? परलोक में उद्धार के लिए? पिंड दान के लिए?
                  वास्तव में उनके साथ मेरा संपर्क ज्यादा नहीं था। लेकिन वह भी तो मनुष्य थे। निम्न मध्यवर्गीय परिवार के मनुष्य। उनकी पत्नी छोटे-छोटे डिब्बों में सेर भर दाल, आधा किलो चीनी बचाकर रखती थी,भविष्य के लिए और उनकी पत्नी की अनुपस्थिति में सारे डिब्बों में चीजें देखकर वह बाजार से और सामान नहीं लाते थे।  होता होगा जैसे हर निम्न मध्यवर्गीय इंसान की जिंदगी में होता है। रोजाना खर्च को लेकर पति और पत्नी के झगड़े और रात को प्रेम। मोनोटोनस धाराप्रवाह जीवन जीते हुए भी उन पर किसी प्रकार का आक्षेप नहीं था। दुःख को उन्होंने अपना लिया था सहजता की तरह। केवल जीने के लिए जीने को ही नियति मानकर। उन्होंने सपने नहीं देखे होंगे एक दिन,सुखी संसार का। अपना कोठा घर,मोजाइक फर्श, सोफा सेट,स्कूटर अथवा उसी तरह का? उनकी पत्नी उनके पास अपनी कल्पनाओं को साकार करने के लिए अभियोग नहीं लगाई होगी? दीवार के रंगों के हिसाब से मैच करके परदा, बेडशीट, टेबल क्लॉथ-ये सब करने के लिए जिद्द नहीं की होंगी। सांत्वना देते हुए वह कहते होंगे : होगा, होगा,सब होगा। एक बार और हार्डी साहिबा का लॉकेट खो जाए तो।
                  हार्डी साहिबा का लॉकेट खो जाएगा। फिर मिलेगा। कृतिवास बाबू हाट के दिन झोला लटकाकर उधार रुपए खोजते रहेंगे। घूमते रहेंगे। जैसे उनके घूमने का अंत नहीं होगा।
                  : आइरन चेस्ट नहीं!फ्रीज़, फोन, डिसटेंपरेड कलर कहाँ गया?
                  : एक बार हार्डी साहिबा की लॉकेट खोने दो।एक बार मात्र। सब कर दूंगा। सब।
                  हार्डी साहिबा का लॉकेट फिर खो जाता है,फिर मिलता है। लेकिन भीतर बरामदे के एक कोने में जमा कर रखे हुए कोयले के ऊपर घुटनों के बल चलकर छोटा बेटा काला रंग लगा लेता है। उनकी पत्नी गाली देती है,गुस्सा करती है, बेटे को पीटती है। छोटा बेटा रोता है। बड़ा बेटा चिल्लाता है,उसकी पढ़ाई में डिस्टर्ब हो रहा है। छोटी बेटी गुस्सा करती है, उसको गाना सीखने में डिस्टर्ब हो रहा है।
                  वह गाली देते हैं अपनी पत्नी को। उनकी पत्नी गाली देती है उनको।वह अपनी पत्नी को। उनकी पत्नी उनको। गाली देतें हैं। गाली देते हैं।
                  :  मोजाइक फर्श कहाँ? सोफ़सेट? आइरन चेस्ट? फ्रीज़?
                  : और एक बार। एक बार हार्डी साहिबा का लॉकेट खोने दो।एक बार केवल।उसके बाद सब ठीक हो जाएगा।
                  हार्डी साहिबा लॉकेट देकर चली जाती है,अपने देश को। लॉकेट तोड़ कर हार बनता है। वह हार बंधक पड़ता है महाजन के पास और वह हार आता नहीं, छूट कर महाजन की मुट्ठी से। लॉकेट और नहीं खोता है। , सोफ़सेट कहाँ है? मोजाइक फर्श?”
: “हमारे से क्या होगा? मेरे बेटे करेंगे। मेरा बड़ा बेटा को आइएएस ऑफिसर बनाऊँगा। सब होगा। उसके बाद सोफ़सेट,मोजाइक फर्श,आइरन चेस्ट,फ्रीज़। सब कुछ।
                  बड़ा बेटा सरकारी ऑफिस में क्लर्क बनता है। मंझला बेटा राऊरकेला जाता है नौकरी करने के लिए। छोटा बेटा परीक्षा में फेल होता है। बड़ा बेटा कहता है: घर चलना मुश्किल है। मंझला बेटा चिट्ठी लिखता है: राऊरकेला के मार्केट में सब चीजें महंगी हैं। घर से बाहर जाने से पैसा खर्च। छोटा बेटा बोलता है: परीक्षा में सारे प्रश्न आऊट ऑफ कोर्स आते हैं? अब तो चले गए। उनके दौड़ने का अंत हुआ। उनको विश्राम लेने दीजिए, चलो-सब खत्म हो गया है। और घर के साथ उनका क्या रिश्ता-नाता है? घर के लोग नीम की कड़वी पत्तियाँ खाकर शुद्ध होंगे। रिश्ता तोड़ना पड़ेगा। वर्ष में एक बार पिंड दान दे देने से खत्म।गया में एक बार श्राद्ध कराने के बाद उतना भी नहीं करना पड़ेगा।
                  अस्थि-संग्रह किया है न? संग्रह कर लो,गंगा में डालनी पड़ेगी। कौन कोलकाता जा रहा है,देखना उसके हाथ में देने से,हावड़ा के नीचे फेंक नहीं देगा?गंगा में अस्थि नहीं पड़ने से शांति कहाँ।
                   आगे आ गया हूँ। उन लोगों को छोड़कर मैं आगे आ गया हूँ,रिक्शे में। और क्या करता? वे लोग तो सब बच्चे हैं। पड़ोसी मुखिया के हिसाब से जो करना था कर दिया। उनके बड़े बेटे का भाग्य अच्छा था कि अंतिम समय में उन्हें देख सका। मुखाग्नि दे सका। मंझला बेटा राऊरकेला में काम करता है अरे बोलना तो भूल गया उन लोगों को। टेलीग्राम तो किया है उसके पास। हो सकता है किए होंगे। शादी शुदा है,इतना दायित्व-बोध नहीं होगा?
                  उनके साथ-साथ चलकर आने की ताकत और उम्र क्या बची है? मेरी भी तो नजदीक आ गई है। ताड़ के बीच वाले पत्ते की तरह थक गया हूँ। पहले कभी जब तक छ मील घूमकर नहीं आता था तब तक हजम भी नहीं होता था। अभी थोड़ी दूर चलने के लिए भी रिक्शा करने की इच्छा होती है। फिर रिक्शा पर बैठने के लिए रिक्शे वाले श्मशान से बारह आना मांगता है। घर पहुँच कर आठ आना दूंगा।  भाव तौल करूंगा। एक ही गाली में उसे सीधा नहीं कर दूंगा।
                  धूप बढने लगी है,समय कितना हुआ होगा। शायद एक बजा होगा। एक बार नहा भी लिया शव दाह के बाद। घर जाकर पानी सींचना भी पड़ेगा और अगर नहाऊँगा तो ठंड लग जाएगी। फिर मुझे तो स्नोफीलिया भी हो गया है,पिछले साल खून की जाँच करवाई थी। अस्पताल की दवाई भी खाई थी। सिर चकरा रहा था। इसलिए दवाई खाना बंद कर दिया था। आयुबल भी तो क्षीण हो रहा है। रोग-बीमारी क्या छूटेगी? हे जगन्नाथ और कितने दिन इस तरह नचाओगे?
                  इस बार कितनी इलिशी मछलियाँ बाजार में आई हैं। कूना की माँ कब से इलिशी- इलिशी कर रही थी। बड़े बेटे को तो इलिशी बहुत पसंद है। छोटी बेटी भी इलिशी के साथ थोड़ा-सा पखाल खाना पसंद करती है। कितने पैसे हैं? चल जाएगा। आधा किलो खरीद लूँगा? कूना की माँ खुश होगी। बहुत दिनों के बाद इलिशी देखने को मिलेगी।
                  ए रिक्शावाला, रुको, रुको। मैं आधा किलो इलिशी खरीद लेता हूँ ।              
     
 
 

 

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