युद्ध क्षेत्र में अकेले फूल का पौधा बनकर हंस रहा है अजितेश

युद्ध क्षेत्र में अकेले फूल का पौधा बनकर हंस रहा है अजितेश
    
 गोल-पोस्ट है,मैदान है,इतना ही नहीं कॉर्नर लाइन के पास लाल रंग का झण्डा भी कोई गाड़ कर गया है लेकिन खिड़की नहीं है। अजितेश की अपनी कॉलोनी की बात याद आ जाने पर  ऐसी ही एक कल्पित छबि मन में आ जाती है। खाने को दौड़ने वाली शून्यता से भरी हुई। किस तरह एक रुक्षता भरी है। किसी भी घर के सामने एक बगीचा नहीं है, लेकिन एक बहुत बड़ा मैदान पड़ा हुआ है घर के सामने, जिधर भी देखने से उधर मैदान ही मैदान है।
       इस इंजीनियरिंग कैम्पस के भीतर कम से कम दो सौ क्वार्टर- उसमें से प्रिंसिपल, लेक्चरर से लेकर क्लर्क पियोन तक है, लेकिन किसी ने अपने घर के सामने बगीचा नहीं बनाया है। ज्यादा से ज्यादा क्वार्टर के पीछे तरफ एक गोशाला या दीवार से घेरे हुए पीछे के आँगन में एक पपीता का पेड़, या साग की क्यारी से ज्यादा किसी ने कभी सोचा ही नहीं है । किसी ने भी सोचा नहीं है कि घर के सामने एक बगीचा होगा। लॉन होगा, गेट होगा। फूल खिलेंगे। सुबह की ओस बिन्दु के ऊपर टहलते-टहलते घूमना होगा चाय के कप के साथ।
      वास्तव में अजितेश भी यह सब नहीं सोच रहा था। एम.एस॰सी॰ कंरने के बाद एडहॉक में जब उसे लेक्चरशिप नहीं मिली और कंपीटिटिव एक्जाम देने के झमेले को अवॉइड कर कहीं भी एक मामूली क्लर्क या फील्ड ऑफिसर होने का सपना देखते हुए अजितेश को उसके दूर के रिश्तेदार मामा ने इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के किसी मंत्री और डायरेक्टर से कहकर इंजीनियरिंग स्कूल में एक लेक्चरर के पद पर भर्ती करवा दिया था। उसी अजितेश के दिमाग में भी उसकी सूक्ष्म जान- बगीचा बगीचे के फूल और सौंदर्य-बोध की बातें घुसना असंभव था अगर उसकी पत्नी मनोरमा आकर यहाँ बोर नहीं हुई होती।
        घटना इस प्रकार थी।इंजीनियरिंग स्कूल का कैम्पस बाज़ार से तीन मील की दूरी पर था। रिक्शे में तीन-चार रुपए का भाड़ा लगता था और यहाँ सब हॉस्टल, वर्कशॉप, आफिस और लेक्चररों के थियेटर थे।इधर स्टाफ क्वार्टर। मनोरमा सभी के साथ मिलजुल नहीं पाती थी। अधिकांश अल्प-शिक्षित औरतें थीं, जैसे कि प्रिंसिपल की पत्नी भी पाँच क्लास तक ही पढ़ी लिखी थी। समाज को अपना नहीं पाई थी मनोरमा। बोर, बहुत बोर हो रही थी शादी के कुछ महीनों तक। उस समय उसने कहा था, “यदि एक बगीचा होता, तो समय पार हो जाता।उसी दिन से बगीचा लगाने का नशा शुरू हो गया ।
         यहाँ से लोहे के खंबे आएंगे। लोहे के तार कहाँ से आएंगे, गेट लकड़ी का होगा या लोहे का। इन सारी बातों को लेकर बहुत चिंता करनी पड़ी थी अजितेश को और सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात उनके कॉलेज के सामने वाले कूजी होटल के भाई को कहने से मात्र एक सौ रुपए के बदले लोहे के खम्भे इतना ही नहीं, एक लोहे वाला गेट भी कहीं से जुगाड़ कर दिया था। पास वाले क्वार्टर के सिविल लेक्चरर दानी बाबू ने हिसाब करके कहा था कि इन लोहे की सारी चीजों का दाम कम से कम एक हज़ार रुपए होगा।  ‘डैम चिपइन दोनों शब्दों पर गुरुत्व देकर दानी बाबू ने मत व्यक्त किया था कि भाई ने निश्चिंत रूप से इन चीजों की चोरी की होगी।
          भाई से जिरह कर कुछ जान नहीं पाया था अजितेश और अंत में भाई ने कहा था, आम खाने से मतलब या गुठली गिनने से। पुलिस का झमेला नहीं होगा, यह मेरा दायित्व है। किसी के कहने से कह दीजिएगा कि भाई ने दिया है। एसडीपीओ के घर बनाने के लिए यही लोहा दिया था। आप थोड़े सरल आदमी हैं, इसलिए लेबर चार्ज को छोड़कर कोई दाम नहीं लिया।
          अंत में उसी भाई ने फेंसिंग बनाने के लिए लोगों का जुगाड़ कर दिया था।  कांट्रैक्टर  के  दो आदमियों ने 20 रुपए में पूरी फेंसिंग का काम कर दिया। एक पहर में फेंसिंग का काम हो गया था। एक बजकर  तीस मिनट पर फ़र्स्ट सेमेस्टर केमिस्ट्री प्रैक्टिकल क्लास खत्म करके घर वापस आकर अजितेश ने देखा कि तार की फेंसिंग और लोहे के गेट वाला एक बगीचा इस तरह उसके घर के सामने तैयार हो गया है, जैसे गर्भवती नारी प्रसव की आशा लिए। अजितेश से ज्यादा मनोरमा उस दिन खुश हुई थी।
          शाम को दानी बाबू ने कहा था, वाह जो भी कहो, जगह अच्छी बन गई। अब कुछ पेड़-पौधे लगा लीजिए। जैसे बैंगन, गोभी, भिंडी आदि। उस तरफ साइड में मक्के के बीज बोये जा सकते हैं। सब्जी का खर्च निकल जाएगा।
      अजितेश ने जब कहा कि वह कीचन गार्डेन न बनाकर फूलों का बगीचा बनाएगा । दानी बाबू समेत सभी को आश्चर्य हुआ। फूलों का बगीचा? फूलों के बगीचे से क्या फायदा? उससे अच्छा सब्जी का बगीचा लगाने से सप्ताह के पंद्रह-बीस रुपयों की बचत होगी, मतलब एक महीने में साठ रुपए बचाए जा सकते हैं। फूलों का बगीचा केवल शो के लिए ही है। इसमें दो पैसे का भी लाभ नहीं है, कनेर और करबी के पेड़ लगा दीजिए, बारह महीने पूजा के लिए फूल मिल जाएँगे। फिर भी अजितेश ने फूलों का बगीचा ही लगाया। ईंटों को कतारों में सजाया। प्लान किया इस जगह सारी ईटें वृताकर रूप मे लगेगी । यहाँ पूजा के पेड़ लगेंगे। यहाँ रातरानी, के पेड़, उसके पास गेंदे के पौधे। यहाँ सेवती के पौधे। ठीक गेट के पास बोगेनबेलिया की लता रहेगी।
      बगीचा नहीं बनता तो शायद अजितेश नया अनुभव प्राप्त नहीं कर पाता। यह एक नया जगत, नया ज्ञान, नया परिवेश। प्रत्येक पेड़-पौधे में प्राण हैं, उनके सुख-दुख हैं, अभाव-बोध है, बगीचा बनाने के बाद अजितेश को पहली बार मालूम पड़ा था और उसे आश्चर्य हुआ था। कितनी विराट एवं विचित्र धरती है, यह विश्व ब्रह्मांड। बगीचे में एक गुलाब के तने में पत्ता फुट रहा था, जबकि पौधे के साथ एक बार पौधा बनकर मिलने से समझ में आता है, एक आसन्न परिवर्तन की उत्तेजना से एक पौधा कैसे कंप उठता है।
       इस इंजीनियरिंग कालेज में एक माली था। कालेज के कैम्पस में चारों तरफ सुनसान मैदान था। कहीं पर भी बगीचे का कोई नामों-निशान नहीं था, जबकि सरकार ने एक बहादुर माली दिया था। अधिकांश समय वह काम करता था। इसलिए अपने घर का बगीचा सजाने के लिए बिलकुल भी कष्ट नहीं करना पड़ा था अजितेश को।
        बगीचे में टूटी हुई त्रिकोणीय ईंटों से लाइनिंग की गई जगह पर रातरानी और गेंदें के पौधे लगाए जाएंगे। आठों दिशाओं में आठों विभिन्न रंगों के कलमी गुलाब के पौधे लगाए जाएंगे। बगीचे के बीच में त्रिकोणीय टूटे ईंटों से गोला बनाकर वहीं पर सेवती के पौधे लगाए जाएंगे बीच में पूजा के पेड़। इसके अलावा, अशोक के पेड़, सोहण्डा, सूर्यमुखी, सर्वजया, रजनीगंधा, जुई के पौधे घर की दीवार के पास लगा जाएंगे बरामदे की सीढ़ीयों के पास मधुमालती की एक लता लगाई जाएगी। इसके अलावा, बगीचे के बाकी हिस्से में दूब घास का लॉन बनाया जाएगा। शाम को वह और मनोरमा टेबल कुर्सी डालकर वहाँ चाय पिएंगे, नहीं तो बोर होने के समय गर्मी की रातों में इलैक्ट्रिकल के मिश्रा बाबू को कहकर उनके डिपार्टमेंट के बच्चों को लगाकर मैन लाइन से एक एक्सटैन्शन लेकर बगीचे के भीतर दो सौ वाट का एक बल्ब लगाकर अजितेश  और मनोरमा किताबें पढ़ सकेंगे, वहाँ पर बैठकर; नहीं तो, दोनों नौ सीखिए ताश खेलेंगे। और सबसे बड़ी बात यह है कि सर्दी की कोहरे मिश्रित भोर में अजितेश बगीचे में मॉर्निंग वॉक करेगा। दूब घास पर गिरी ओस से उसके पांव गीले हो जाएंगे एक शांत स्निग्ध और ठंडी अनुभूति के भीतर अजितेश घूमते-घूमते कोहरे में सूर्योदय देखेगा।
         कालेज के माली ने लॉन बनाने के लिए पहले मिट्टी खोदी। उसके बाद  प्रिंसिपल के घर में बकरी के मींगड़ी वाली खाद लाकर मिला दिया। रास्ते के किनारे से बालू लेकर आया। अकेले-अकेले हँसते हुए अजितेश को कहा- मिट्टी गूंथना सबसे बड़ा काम होता है, सर। किसी का एक काम करने से पहले मिट्टी को ठीक करना जरूरी है, घर बनाइए या बच्चों को पाठ पढ़ाइए, सबसे बड़ी बात है मिट्टी गूंथना।
      दो तीन क्लास पढ़ाई पढ़ने वाले उस निपट मूर्ख माली के पास दर्शन-सुलभ बातें सुनकर खुशी से उल्लसित होकर  मनोरमा ने अजितेश को कहा था, “हमारे देश के शिक्षित लोगों की बात में भी जानकारी नहीं होती है। कुछ भी समझ में नहीं आता है, लेकिन इन लोगों के पीछे एक बड़ी अभिज्ञता है। है- जिसे हम भूल जाते हैं, अनुभव उन्हें शिक्षित कर देता है। नहीं?”
      अजितेश उस बगीचे के संपर्क में आकर समझ गया था कि डिग्री-फिग्री पाठ-शाठ कुछ नहीं होते हैं। वास्तव में अनुभव होना चाहिए। पूजा के पेड़ों के लिए बहुत कम पानी चाहिए। सेवती के पौधे में कीड़े लगने से कुछ गैमेक्सीन देना चाहिए। गुलाब के पौधों में पहले-पहले ज्यादा पानी चाहिए, लेकिन पौधे बड़े हो जाने से, फूल खिलते समय पानी कम देना पड़ता है, बरसात के दिनों में गुलाब की डालियों को काट कर ठूँठ बना देना चाहिए। मल्ली के पौधे में साल भर पर्याप्त पानी देकर खुश करना होगा, नहीं तो अभिमानी पौधे चैत्र महीने में थोड़े-से भी नहीं हंसेंगें। पौधों के बढ़ते समय यूरिया देना होगा। कली खिलने से पहले कैल्शियम देना होगा। खाद पेड़ की जड़ों से दो अंगुली छोड़कर देना पड़ता है। खाद देने के बाद पौधे का व्यास बहुत बढ़ जाती है। पर्याप्त पानी देना होगा। किससे लता निकलेगीआश्रय देने के लिए एक डांग वहाँ गाड़नी होगी। ये सारा ज्ञान अजितेश या मनोरमा की अपनी पढ़ाई, उच्च शिक्षित या बुद्धिजीवी कहलाने के गर्व के भीतर भी सीख नहीं पाते, बगीचा नहीं लगाने से। और अजितेश का ज्ञान उदय नहीं हो पाता कि बगीचे के या फूल के पौधे एक-एक नासमझ मासूम बच्चों की तरह होते है, जो कष्ट अनुभव कर सकते हैं, यंत्रणा में सूख कर छटपटाकर मर जाते हैं, लेकिन कभी भी मुंह खोलकर कुछ भी बोल नहीं पाते।
      बगीचे के साथ जुड़ने के बाद धीरे-धीरे अजितेश को अहसास हुआ, वह और मनुष्यों के पास नहीं है। वह है कलमी गुलाब के पौधों के कोमल पत्तों के पास, मल्ली फूल की सूखी टहनियों के पास, झूलते हुए अकेले हरे पत्ते के भीतर, थूजा के पेड़ की जड़ में, सेवती के पौधे की लताओं में दूब-घास के उपर ओस कणों या सूर्यमुखी फूलों के पीले-पराग रेणु में, बोगनविला के कागजी-फूलों की पंखुड़ियों में या अशोक पेड़ के फूलों के वृन्त के भीतर। धीरे-धीरे अजितेश उसका अपना परिचय भूल गया और इंजीनियरिंग कॉलेज की केमिस्ट्री क्लास, टीचर्स कॉमन रूम का कैरम खेल, से मनोरमा को शादी से पहले देखता आ रहा हुआ प्रतिश्रुतिमूलक प्रेम-पत्र सजाकर रखा हुआ ट्रंक, अध्ययन कक्ष की किताबों की अलमारी, जिसके भीतर से पैसे के लिए घर के अभाव असुविधा के बारे में लिखे हुए पिताजी के पोस्ट कार्ड की चिट्ठियां, साली की शादी, बहन का कॉलेज में एडमिशन और बंधु-बांधवों के सौजन्यमूलक साक्षात्कार से बाहर निकलकर अपने बगीचे के एक कोने में एक फूल का पौधा बनकर रहा गया।
      अजितेश द्वारा फूलों के बगीचे बनाने की बात धीरे-धीरे स्कूल कॉलेज के सभी स्टाफ के भीतर प्रचारित हो गई और अजितेश ने देखा कि सब इस बात को स्वाभाविक रूप से नहीं ले रहे थे। फूलों का एक बगीचा लगाना निहायत मामूली चीज होता है। प्रायः हर घर के सामने होता है। छोटी-सी चीज किस तरह से अस्वाभाविक रूप से बड़ी हो गई, इंजीनियरिंग कॉलेज के कैम्पस में वह अनोखी बन गई।
      अवश्य इस बंजर-भूमि के कॉलेज कैम्पस में एक भी बगीचा नहीं था और इतना टेक्निकल रूप से परिपक्व हो गया था, वहाँ रहने वाली नीरस और अनपढ़ पत्नियों में सामान्यता सौंदर्य-बोध या रुचि बोध भी नहीं था। इस क्षेत्र में फूलों का बगीचा लगाना निश्चित रूप से एक नई बात थी।
        वर्कशॉप के इंचार्ज मिश्रा बाबू हमेशा अपने आप को एक चालाक और सक्षम मनुष्य समझकर सभी के सामने अपना परिचय, देने की कोशिश करते हैं, वे स्वयं सभी के सामने कॉमन रूम में अजितेश को अपमानित करने के लिए हंसी हँसते हुए पूछने लगे, “और अजितेश बाबू, आपके बगीचे का क्या हाल चाल है?”
      यह बात साधारण रूप से पूछे जाने पर कुछ भी फील नहीं होता अजितेश को। जबकि उसने पूछा था, मजाक के लहजे में मुस्कराते हुए, अन्य स्टाफ़ की तरफ आँख मार कर इशारा करते हुए। अजितेश समझ गया था कि उसे अपमानित करने के लिए यह प्रश्न पूछा गया था। लेकिन उसने उस तरफ ध्यान नहीं दिया। मिश्रा बाबू का दूसरा मंतव्य यह था, जो भी हो फूलों का व्यवसाय भी एक अच्छा व्यवसाय है, कर पाने से सारे बिज़नेस समृद्धि देते हैं, समझे? वह फूल का हो या सूखी मछली का हो?
      अजितेश के चेहरे का हनुहाड़ सख्त हो गया, वह थोडा गंभीर हो कर कहने लगा, “बिजनेस के सिवाय दुनिया में और कुछ नहीं है, दुनिया में सभी लोग बिजनेस के लिए फूलों का बगीचा लगते है? जो फूलों का बगीचा लगाता हैं, वह जानता है कि वह क्या है! ऐस्थेइज्म संपूर्ण अलग अध्याय है मिश्रा बाबू। आपके जैसे भौतिकवादी लोग समझ नहीं पाएंगे।    
      भौतिकवादी होते हुए भी मिश्रा  बाबू ने इस बात को मान लिया था कि बगीचा सुंदर दिखाई दे रहा है। जब वहाँ पर फूल खिलने शुरू हो गए, गेंदा, सूर्यमुखी, सेवती, अशोक, सर्वजया, बोगानलिया और गुलाब के पौधों में एक साथ फूल खिलने लगे थे। काले गुलाब और चॉकलेटी रंग के सेवती फूल बगीचे का सबसे बड़ा आकर्षण केंद्र था, उस सीजन के लिए। कहा जा सकता है। फ्लावर ऑफ सीजन की उपाधि पाने के योग्य। अजितेश और मनोरमा बगीचे में मिट्टी खोदने, कैल्शियम की खाद डालने, पानी देने या लॉन में घूमते समय पास-पड़ोसियों के  प्रशंसा के दो शब्द सुनते थे, जो भी हो, बहुत ही  सुंदर बगीचा लग रहा है। इतने दिनों के बाद सुंदर दिखाई  दे रहा है। हमारे अंचल में तो फूलों का नामों-निशान ही नहीं था।
        अजितेश और मनोरमा ने फूलों के बगीचे को लेकर जब गर्व करना शुरू कर दिया था, उस समय फ़िज़िक्स के बहीदार बाबू ने एक दिन आकर अजितेश को कहा, प्रिंसिपल साहब आपके बगीचे को लेकर थोड़ा फील कर रहे हैं?
        अजितेश को आश्चर्य हुआ। कोई अपने घर के सामने बगीचा लगाएगा और किसी का उसमें फील करने का क्या मतलब है?
      मिसेस प्रिंसिपल ने प्रिंसिपल को कहा है, यह ठीक बात नहीं है, प्रिंसिपल के घर के सामने बगीचा नहीं है, जबकि आपने एक बगीचा लगा दिया है। आपकी पत्नी प्रिंसिपल के घर भी नहीं जाती हैं। इस तरह उनकी यह धारणा है कि आपकी पत्नी थोड़ी-सी घमंडी है। वास्तव में, मिसेस प्रिंसिपल आहत हो गई हैं। इस सारी बातों को लेकर। आप अपनी पत्नी को क्यों नहीं कहते है कि मिसेस प्रिंसिपल के घर जाकर गलतफहमी दूर कर लें।
      एक इंजीनियरिंग कॉलेज के कैम्पस में प्रिंसिपल की पत्नी को मिसेस प्रिंसिपल कहकर सभी आदर करते हैं, जबकि मिसेस प्रिंसिपल एक अशिक्षित औरत है, जो न घर संभालकर रख पाती है न बच्चों को। शरीर पर मैले धूल भरे फटे-पुराने पैंट-शर्ट, बिखरे बालों वाला चेहरा लेकर उन्होंने सारी कॉलोनी में घूमते हुए या घर के पीछे नाली में बेशर्म होकर पैख़ाना करते हुए अजितेश ने देखा है। ऐसी अशिक्षित औरत के पास वशीभूत होकर हां हांहंसने के लिए मनोरमा के रुचिकारक के निश्चय रूप से विपरीत था। अजितेश ने भी बोहिदार बाबू की बातों को इतना सीरियसली नहीं लिया था।
      उसके बाद एक दिन प्रिंसिपल ने ही अजितेश को बुलाकर कहा, देखिए अजितेश बाबू, आपके नाम कॉलोनी के सभी लोगों ने आरोप लगाया है। अजितेश समझ गया था, यह आरोप भी आधारहीन है, क्योंकि कॉलोनी के किसी के भी घर वह नहीं जाता है। उसका किसी के साथ पर्सनल संबंध से ज्यादा संबंध नहीं है तो उसके खिलाफ कौन आरोप लगाएगा?
      आपने सरकारी जगह का अतिक्रमण कर बगीचा बनाया है। देखिए, सरकारी क्वार्टर के सामने इस तरह बगीचा लगाना अनुचित बात है। आपने वह जगह घेरी है। कल कोई और आदमी जगह घेरेगा? उसके दूसरे दिन और कोई। सभी अगर क्वार्टर के सामने वाली जगह को घेरना शुरू कर देंगे तो कॉलोनी  के अनुशासन और प्रशासन का मूल्य कहाँ रह जाएगा? इसके अलावा कॉलोनी के माली को कभी-कभी आप अपने बगीचे का काम करवाते है, यह कितनी बड़ी अनुशासनहीनता है, कहिए? अंतत: आपकी तरह दायित्वसंपन्न टीचिंग स्टाफ से ऐसी उम्मीद न थी? अजितेश समझ नहीं पाया, क्या कहेगा। मिसेस प्रिंसिपल की ईर्ष्या के बारे में तो उसने बाबू से सुना था। मगर इस तरह अनुशासनात्मक कार्रवाई वाले तकनीकी प्रसंग के बारे प्रिंसिपल उससे जवाब करेंगे, उसने सोचा नहीं था। इन सारे प्रश्नों का क्या जवाब देगा वह? क्या वह मिसेस प्रिंसिपल को धमकी भरे लहजे में कह देगा कि उस इजीनियरिंग कॉलेज में कहाँ पर क्या गलत हो रहा है, सारी बातों की उसे जानकारी है और उचित समय आने पर बता देगा? हॉस्टल के सुपरिटेंडेंट षडङ्गी बाबू हॉस्टल की खटिया, टेबल, चेयर अपने घर ले गए हैं, मेस मैनेजर के पास पैसे मांगते हैं, स्कूल पियोंन प्रिंसिपलके घर रसोई करता हैं, बच्चों के क्लब फ़ंड से प्रिंसिपल खुद दस-पंद्रह हज़ार रुपए मार लेते हैं। टेलिकम्यूनिकेशन के पात्र बाबू हर महीने एक बार लोकल परचेज़ के नाम से कलकत्ता जाते हैं। इस बाबत में मिलने वाला कमीशन किन-किन लोगों में बँटता है, उसकी उसे जानकारी है, ये सारी बातें कहकर अजितेश प्रिंसिपल को चुप करा देगा? मगर नहीं, वह प्रिंसिपलके सामने बहस नहीं कर सकता। शायद अजितेश का व्यक्तित्व ही ऐसा है कि उचित समय पर मुंह से शब्द नहीं निकलते, भले ही, जितना ही चेहरा कठोर या क्रोध से लाल-पीला क्यों न हो जाए। नहीं, शायद वह कुछ नहीं कह पाता। विवशता से वह चुप होकर रह गया। प्रिंसिपल ने कहा, “सबसे अच्छा यह होगा, आप बगीचे को नष्ट कर दें।
      अजितेश आश्चर्य चकित रह गया। नहीं, उसे कुछ कहना ही पड़ेगा। ग़ुस्से से उसने कानमूल लाल हो गए। उत्तेजना से दोनों पांव हिलने लगे। वह साहस जुटाने की कोशिश करने लगा। मगर नहीं कर पाया, प्रिंसिपलने राय देते हुए कहा, “जाओ बगीचे को तोड दो।”    
       अजितेश चैंबर से बाहर आ गया। कुछ भी विरोध नहीं कर सका।
       आप इतने भीरु क्यों हो? आप उनके अधीनस्थ हो सकते हैं, मगर उनके छात्र तो नहीं है। प्राइमरी स्कूल के बच्चे की तरह उनसे डरते क्यों हो, उनको तो मुंह पर जवाब देना चाहिए या कि तुम बगीचा नहीं तोड़ सकते हो। वे क्या कर लेंगे आपका? सीसीआर खराब करेंगे? इन्स्टीट्यूट को लिखेंगे? तुम्हारा स्थानांतरण कर देंगे? उससे ज्यादा और क्या कर लेंगे? तुमने उनके मुंह पर जवाब क्यों नहीं दिया?
      मनोरमा की भर्त्सना से अजितेश को अहसास हुआ कि उससे गलती हुई है। प्रिंसिपल के सामने जवाब नहीं दे पाना गलती नहीं है, बल्कि उसके असामर्थ्य की बात मनोरमा के सामने कहना ही गलत हो गया। पत्नी के हिसाब से कौन नहीं चाहेगी कि उसका आदमी सुपुरुष हो। आज स्वयं अजितेश ने अपनी इमेज बर्बाद कर दी, अपने दुर्बल व्यक्तित्व का परिचय देकर मनोरमा के सामने ।
      अपनी गलती को छुपाने के लिए विरक्त होकर उसने कहा, “जाओ, इतनी पढ़ी-लिखी नारी होकर भी ऐसी बातें कहती हो। मैं क्या कर सकता था? कहो, क्या कर सकता था। प्रिंसिपलके साथ लड़ाई-झगड़ा करता। हमारे स्वीपर रामलाल या चपरासी मित्र बाबू शराब पीकर प्रिंसिपल को भद्दी- भद्दी गालियाँ देते घूमते हैं, ऐसा हल्ला-गुल्ला मैं भी करता? किसने कहा कि आदेश का मैं पालन करूंगा? मैंने आज ही दरखास्त दी है कि उनके आदेश का अनुपालन करना मिरे लिए संभव नहीं है।
      दरखास्त लिखकर प्रिंसिपल के पास भेजने के बाद अजितेश को पता चला कि घटना की खबर, पता नहीं, किस तरह चारों तरफ फैल गई थी। धीरे-धीरे अजितेश ने देखा कि वह बगीचा लोगों के बीच बहस का मुद्दा बन गया था। अजितेश मानो एक गोपनीय षड्यंत्र का नायक हो, सभी उसे देखकर फुसफुसाने वाले स्वर मे प्रिंसिपल के विरुद्ध विषोद्गार करना शुरू कर देते, जबकि अजितेश  जानता है उसके पक्ष में कोई नहीं हैं और आत्मीयतापूर्वक बातें करने वाले ये लोग प्रिंसिपल के सामने विगलित हो रहे अजितेश के विरुद्ध कान भरना शुरू कर देते।
       प्रिंसिपल द्वारा इंडस्ट्री डिपार्टमेंट को चारपृष्ठीय पत्र लिखने की खबर अजितेश को मिली थी और पहले कुछ दिन दुश्चिंता मे बीतने लगे। क्या होगा उसका? क्या उसका स्थानांतरण कर देगा इंडस्ट्री डिपार्टमेंट? उसे डिसमिस कर देगा? स्पष्टीकरण मांगेगा या बगीचे को तोड़ने के लिए विवश करेगा?
       बगीचे तोड़ने की बात पर अजितेश विचार करने लगा था। मनोरमा ने यह बात अवश्य कही थी बगीचा हम नहीं तोड़ेंगे। अगर इंडस्ट्री डिपार्टमेंट हमें बगीचे तोड़ने का आदेश देगा तब हम हाइकोर्ट में रिट लगा देंगे। क्या कहते हो?  
       हाइकोर्ट में रिट? मनोरमा जैसी साधारण स्त्री को यह मालूम नहीं कि हाईकोर्ट में रिट की खबर अखबारों में छपवाने में जितनी मेहनत नहीं करनी पड़ती है, उससे ज़्यादा रिट करने में पड़ती है। कटक से इतनी दूर रहकर रिट लगाने का काम कितना दुष्कर है, सोचने मात्र से अजितेश उदास हो गया।
         इंडस्ट्री डिपार्टमेंट से भूरे लिफाफे में एक चिट्ठी आएगी, जिस पर’ “ऑन इंडियन गबर्नमेंट डिपार्टमेंट सर्विसका स्टांप लगा होगा और उसके नीब वाली पेन से अजितेश का पता लिखा होगा और डिस्पेच की जगह पर इंडस्ट्री डिपार्टमेंट की मोहर लगी होगी- ऐसी चिट्ठी को अजितेश कुछ दिनों तक संभाल कर रखेगा। कुछ दिन, कुछ सप्ताह इंतजार करते करते डेढ-दो महीने बीत गए थे, मगर कोई चिट्ठी नहीं आई।
        प्रिंसिपल के साथ लड़ाई होने के बाद से प्रिंसिपल भी अस्वाभाविक हो गए थे। अजितेश भी सभी प्रकार की अप्रीतिकर परिस्थितियों से अपने आप को बचाने के लिए क्लास में ध्यानपूर्वक पढ़ा रहा था। किसी भी क्लास को खाली नहीं छोड़ रहा था। कोर्स को समय के अनुसार और केमेस्ट्री प्रेक्टिकल पुस्तिकाओं को ऊपरी निगाहों से न देखकर प्रत्येक एक्सपरीमेंट पढ़ कर मंतव्य लिखना शुरू किया था। इस तरह वर्तनी में संशोधन भी कर देता था लाल स्याही से, प्रत्येक रजिस्टर पर वह कुछ रिमार्क या कुछ लाल निशान छोड़ते हुए जा रहा था जिससे कोई यह नहीं कह पाएगा कि अजितेश बिना देखे रजिस्टरों पर दस्तखत करता हैं।
      लेक्चरर स्टाफ भी प्रिंसिपल के साथ झंझट होने के बाद किस तरह साथ छोड़ दिया थाअजितेश को अपनी गोपनीय बातों मे शामिल नहीं करते थे और उनके वार्तालाप के दौरान अगर अजितेश वहाँ पहुँच जाता था तो वे लोग अस्वाभाविक तौर पर चुप हो जाते थे। अजितेश के लिए यह सबसे दुखद बात थी। आखिरकार वह कॉलेज में अकेला पड़ जा रहा था- संवेदना से मित्रता के हाथ बढाने या अपने मन की बात कहने वाला भी कोई उसे नहीं मिल पा रहा था।
      मगर धीरे-धीरे स्टाफ वर्ग भी अपनी अस्वाभाविक नफरत और संदेह से उबरकर अजितेश के साथ पहले की तरह मिल गए थे। लेक्चरर्स कॉमन रूम में फिर से पहले की तरह अजितेश। उन लोगों के साथ गप करने में शामिल होने लगा था और कई उसे अपनी गोपनीय बातों को पहले की तरह आपस में कहते-कहते जैसे चुप हो जाते थे, आजकल बंद कर दिया था। सभी उस घटना को भूल गए थे।
      अजितेश को भी उस झगड़े के बाद से एक मानसिक उद्वेग, भय, आशंका घेरे रहती थी, उन रातों में अच्छी तरह नींद भी नहीं आती थी। मनोरमा की साधारण हंसी-खुशी की बातें या व्यवहार विरक्तिकर लगने लगा था और क्लास में पढ़ते- पढ़ते शेक्सपियर आई नो नॉट ओन्ली आई एम सो सेडदृष्टिकोण की तरह उदास हो जाता था। वे सारी बातें भी धीरे-धीरे खत्म होने लगी थीं। इंड़स्ट्री ऑफिस के भूरे रंग के खुरदरे लिफाफा के ऊपर और आईजेएस के अशोक स्तंभ के लाल या बैंगनी मोहरों का भय दिखाई नहीं दे रहा था। मनोरमा के हंसी खुशी देखकर अजितेश पहले की तरह उल्लसित हुआ और बगीचे के फूल-पौधे के साथ मिलकर फिर से एक बार भोर के ओस-कणों से जीवन-शक्ति ग्रहण करने लगा।
      गेंदें के फूलों की नरम पंखुड़ियाँ शरीर के अति गोपनीय दुखों को खींच ले रहीं थीं, सेवती फूलों के पंखुड़ियाँ से कमला या हलदिया होने की रोमांचक अनुभूतियों के साथ अपने आप को जोड़कर अजितेश ने अनुभव किया कि प्रत्येक अब केवल रसायनिक परिवर्तन ही नहीं है समय के परिवर्तन को भी वे अनुभव कर पाते हैं हाथों की पहुँच में । एक अद्भुत रहस्यपूर्ण, आनंद और खुशी के अंदर फिर से मनोरमा हाथ पकड़कर तेज चलते-चलते अचानक हाँफने लगी तो अजितेश रुक गया।
      एक सुबह उठकर देखा कि सारा बगीचा छिन्न-भिन्न हो गया था। किसी निर्दय आततायी ने पहुँचकर तोड़ दी थी सेवती की लता को, उखाड़ दिए थे गुलाब और गेंदे के पौधे- पांवों के नीचे कुचल दिया था मल्ली, सर्वजया, अशोक और थूजा पेड़ के चारों तरफ से। कल तक जिस बगीचे में भोर के शिशिर-बिंदु प्राणों में जीवन-शक्ति का संचार कर रहे थे, आज किस तरह श्मशान हाहाकार करते हुए नजर आ रहे थे।
      अजितेश का मन बुरी तरह से दुखी हो गया। मनोरमा यह देखकर रोने लगी, आँखों में आंसू छलकने लगे। ऐसा किसने किया? इन छोटे-छोटे पेड़-पौधे को काट कर छिन्न-भिन्न करने के लिए उसके हाथ कैसे चले? खाने के लिए?
      कॉलोनी के सारे लोगों को संदेह की दृष्टि से देखने लगा अजितेश। किसने किया है यह कांड? बोहीदार बाबू दातौन करते हुए उजड़े बगीचे को देखने के लिए कौतूहलवश आगे आए और संवेदना जताने के लिए आह, उह, हाय करने लगे थे। मगर अजितेश ने उसकी आंखों में  पैशाचिक उल्लास को खेलते हुए देखा। शायद बोहिदार बाबू का ही यह काम है। उतरदायी है वह? पात्र बाबू अजितेश के बगीचे के पास में से साइकिल पर चले गए, बिना कुछ पूछताछ किए। उनके जाने कौतूहलहीन बेचैनी। अजितेश सोचने लगा कि असली अपराधी की यही निशनी है। शायद पात्र बाबू असली पट गोवर्धन है। वास्तव में क्या पात्र बाबू ही? अजितेश सभी को संदेह की आंखों से देख रहा था। कॉलेज में प्रिंसिपल की अहंकार युक्त मुस्कराहट से ऐसे लगा रहा था। मानो विजयी होने का मान उसके होठों पर उतर आया हो। प्रिंसिपल जैसे आदमी भी जब ऐसा काम करेंगे तो?
      प्रैक्टिकल क्लास में बच्चों को जिंक का समतुल्यांक भार निकालने की पद्धति बताते समय अन्यमनस्क हो गया था अजितेश। कलमी गुलाब में काली लगने लगी थी। आततायी के बढ़ते हाथों के स्पर्श से सेवती के पौधे ड़र नहीं गए होंगे? उन्हें कष्ट नहीं हुआ होगा? सोचने मात्र से अजितेश के सीने में दर्द होने लगा था । वह बहुत उदास हो गया था।
      कॉलेज में सभी को मालूम चल गया था कि अजितेश के बगीचे को किसी ने छिन्न-भिन्न कर दिया है, जबकि एक-दो को छोड़कर बाकी सभी ने इस प्रसंग पर कुछ चर्चा नहीं की। अजितेश को पता है, उसका बगीचा प्रिंसिपलपसंद नहीं करते थे इसलिए अनेक लोग इस पर बात नहीं करना चाहते है। अजितेश भी कॉमन रूम में किसी को यह नहीं कहा पाया कि उसने कितनी चेष्टा, लगन, कल्पना और अभिज्ञता के साथ बनाए इस बगीचे को एक पल में किसी ने नष्ट कर दिया, न तो अजितेश ने कुछ कहा और न ही किसी ने संवेदना जताई।
      लेजर पीरियड में अजितेश घर आ गया था। दरवाजा खोलते ही शून्यता बोध उसे घेरने लगी। इस जगह को लेकर उसने कितनी कल्पना की थी, कितने सपने देखे थे। कितनी अनुभूतियां। आज वह जगह एक खाली है। एक चक्रवात के बाद जन-धन रहित गाँव के रास्ते की तरह खाली है।
      रोते-रोते मनोरमा की आंखेँ सूज गई थीं। अजितेश को देखकर एक बार और वह रोने लगी। कहने लगी थी कि घर के सामने कितना खालीपन लग रहा है, देखो। उसने घूमकर देखा तो सीने में खालीपन लग रहा था, मानो सब कुछ खत्म हो गया हो।
      उसके सीने पर सिर रखकर छोटे बच्चे की तरह मनोरमा रोने लगी थी और अजितेश उसे   सांत्वना देते हुए कह रहा था, अच्छे बच्चे रोते नहीं है। हम फिर से नया बगीचा लागाएंगें। इतना जल्दी हम टूट जाएँगे? हम एक बार फिर से बगीचा लगाकर चैलेंज का जवाब देंगे।
      अजितेश के कॉलेज से लौटते समय घर की सीढ़ियों के पास घुटनों पर मुंह लगाकर मनोरमा बैठी थी। सारी शाम उन्होंने कुछ भी बातचीत नहीं थी और न ही रसोई भी बनाई थी। दोनों चुच बैठे रहे। दोपहर की बची-खुची तरकारी और मूढ़ी के साथ ही उन्होंने खाना खाया था। न तो अजितेश ने मनोरमा से पूछा कि आज उसने खाना क्यों नहीं बनाया, न ही मनोरमा ने अपनी तरफ से उसे कुछ जवाब दिया था।
      खाने के बाद चुपचाप उठकर मनोरमा ने बिस्तर झाड कर बिछा दिया और मच्छरदानी लगाकर लाइट बंद कर वह सो गई। ड्राइंग रूम में बैठकर वह बहुत समय तक सिगरेट पर सीगेरेट पीता जा रहा था। अजितेश के बेडरूम में आने के बाद मनोरमा के खुर्राटों की आवाज सुनने लगा था। मनोरमा दुखी मन से सो गई थी, मगर अजितेश उसका ठीक उल्टा है। मन में जरा-सा दुख होने पर आँखों से नींद गायब हो जाती। वह अस्थिर हो जाता था, छटपटाने लगता था। कहीं भाग जाने की इच्छा होने लगती थी।    
      अजितेश बिस्तर पर सोने की चेष्टा करने के बाद भी सो नहीं पाया था। उठकर उसने खिड़की खोल दी। बाहर  में चंद्रमा का प्रकाश। उसके भीतर झिलमिलता बगीचा। कल रात  चंद्रमा के प्रकाश में फूलों के खिलने वाला बगीचा सुंदर दिख रहा था, जबकि आज और वहाँ कुछ न देखकर स्तब्धता घेरने लगी थी अजितेश को। शायद हमारा जीवन भी इसी तरह है। यह जो अजितेश आज है, कल नहीं रहेगा, फिर भी चंद्रमा का प्रकाश रहेगा। ठीक इसी तरह चाँदनी रात में ओस भीगी दुनिया रहेगी। चारों तरफ निस्तब्धता के अंदर यह धरती अन्य दूसरे रूप में बदल जाएगी उस समय। वह सब-कुछ देखने के लिए अजितेश नहीं रहेगा। मगर धरती ओस कणों से ऐसे ही भीगती रहेगी।
      नहीं, कुछ भी भय नहीं है, न ही किसी प्रकार का पश्चाताप या दुख है। ये सब कुछ सोचने से अजितेश के मन में शांति उमड़ने लगी थी, उसने सोच लिया कि इस पल वह मृत्यु से साक्षात्कार निर्भय होकर खुशी से कर सकता है। पता नहीं क्यों, उसे लगने लगा कि उसकी इस उपलब्धि के बारे में मनोरमा को कहना जरूरी है।
     मनोरमा को उठाने पर तंद्रिल स्वर में कंठ से विरक्त होकर पूछने लगी, “क्या हुआ?”
: “तुम्हें मौत का भय लगता है, मनोरमा?”
: “क्या हुआ?”
: “तुम्हें मौत का भय लगता है?”
: “क्यों? क्या हुआ?”
: “नहीं, ऐसे ही पूछ रहा था, तुम्हें मौत का भय लगता है?”
: “हाँ।
: “मुझे नहीं लगता।
: “अच्छा, ठीक है, सो जाओ।
      मनोरमा फिर से गहरी नींद में सो गई। अजितेश बिस्तर पर बैठकर सिगरेट सुलगाने लगा। घर के अंदर चाँदनी आने लगी थी। खिड़की के उस पार सुनसान बगीचे में और कोई फूल नहीं खिल रहा था।
      ऐसे ही एक दिन अजितेश छोटा बच्चा था। एक दिन फुटबाल खेलते जाते समय सीने में दर्द हो रहा था। वह दिन उसे अच्छी तरह से याद है- वह यू॰पी स्कूल बोर्ड की परीक्षा देने के लिए सदर महकमा स्कूल की ओर जा रहा था। साथ में मास्टरजी भी थे, बच्चों को क्रमबद्ध होकर चलने के लिए कह रहे थे। उन दिनों की शैशव किशोरावस्था किस तरह चली गई। अजितेश बिना चेष्टा के बड़ा हो गया स्कूल के बाद, कॉलेज और कॉलेज के बाद यूनिवर्सिटी। उसके बाद नौकरी और उसके बाद शादी। अचानक उसके मन में ये सारी बातें अर्थहीन लगने  लगी। कल उसके मरने के बाद सारी चीजें तात्पर्यहीन हो जाएगी। एक साल, दो साल तक लोग याद रखेंगे, चार-पाँच साल तक मनोरमा याद रखेगी। उसके बाद सब भूल जाएंगे। घर-संसार करने के लिए बगीचा हेतु प्रिंसिपल के साथ झगड़ा करने का कोई मतलब नहीं है।
      अजितेश ने खिड़की बंद कर दी। सिगरेट बुझाकर एशट्रे में डाल दी। मच्छरदानी के अंदर रजाई के भीतर घुसते ही सारे दिन का कष्ट, दुख, उदासी सब खत्म हो गई। उसे बहुत हल्का लगने लगा था। अब वह आसानी से गहरी नींद सो सकता था। मनोरमा के पुकारने पर सुबह उसकी नींद खुली। मनोरमा उसे बिस्तर से उठाकर सीधे ले गई बगीचे की तरफ। वह कहने लगी देखो, विपर्यय अवस्था में टूट-फूट होने में बाद भी आततायी के षड्यंत्र की ओर ध्यान दिए बगैर एक फूल कैसे खिल रहा है, देखो। अजितेश ने देखा, छितर-बितर बगीचे के एक कोने में गुलाब के पौधे के तने पर एक कली पता नहीं, कैसे छिपकर रह गई थी, अब फूल बनकर हंस रही है, सुबह की नरम धूप में।
 
 








 

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