मुखौटा

मुखौटा
भुवनेश्वर में स्कॉच व्हिस्की नहीं मिली। स्वामीनाथन ने पहले से कहा था,व्हिस्की नहीं पिएं। अब ऑर्डर दे दिया था रम लाने के लिए। मगर ओल्ड मंक रम, वह भी गोल्ड। लेकिन ओल्ड रिजर्व नहीं मिला। स्वामीनाथन ने फरमाइश की ओल्ड रिजर्व की। होटल बॉय लौट कर आया और कहने लगा, सिर्फ थ्री एक्स के अलावा और कोई रम नहीं मिलेगा।
                  भुवनेश्वर एक रबिश टाउन। गुस्सा हो गया था असीम। आज का दिन बिलकुल अच्छा नहीं था स्वामीनाथन को कितनी मिन्नत के साथ इतनी दूर लाया था,मगर अब तक फाइल के बारे में चर्चा नहीं कर रहा था। ठीक इस समय स्वामीनाथन के लिए ड्रिंक नहीं मिलनी थी?
                  अंत में विपदा से उबारने की तरह स्वामीनाथन ने फरमाइश की कि थ्री एक्स चलेगा पर साथ में कोल काकटेल करना पड़ेगा। अब जाकर असीम के चेहरे पर हंसी खिली। चलो निजात मिल गई।
                  स्वामीनाथन सुबह से कितना गंभीर था! असीम को अपना विजिटिंग कार्ड भेजने के एक घंटे बाद बुलाया। असीम स्वामीनाथन के पर्सनल एसिस्टेंट के सामने बैठ कर चार अंग्रेजी और दो ओड़िया अखबार पढ़ चुका था; नोटिसों को छोड़कर।
                  स्वामीनाथन ने प्रथम मुलाकात में बैठने के लिए भी नहीं कहा था। अवश्य असीम अपनी स्मार्टनेस के अनुसार चेयर खींचकर बैठ गया था और परिस्थिति को संभाल लिया था। पहले गंभीर जैसे दिख रहा था,स्वामीनाथन। बाद में असीम को ऐसा लगा,शायद बूढ़ा अबसेंट माइंड है।
                  लेकिन असीम की यह भी धारणा बदल गई,जब सामान्य और सहज हो गया था वह और असीम के अपनी दिल्ली की लॉबी वाली बात बताने पर,स्वामीनाथन ने कहा था, “ जब तक सूरज चाँद रहेगा, ओड़िशा की उन्नति नहीं होगी। क्यों जानते हो? यहाँ साले कूजी नेता से लेकर मंत्री तक सब धूर्त हैं। बदमाश लोगों से झूठ बोलने में और शोषण करने में माहिर लोग? वे भी उसी नेता के इशारों पर नाचते हैं।
दिन अच्छा नहीं था। पिछली आधी रात से एसी मशीन भी खराब थी। सुबह टॉयलेट में पानी नहीं आ रहा था। होटल बॉय ने एक प्लास्टिक टब में पानी लाया था,टॉयलेट पेपर की जरूरत नहीं थी। फिर भी कामोड़ के ऊपर बैठकर देखा तो टॉयलेट पेपर नहीं थे। मन और भी खराब हो गया।  
         शुरू-शुरू में इतने में भी बिगड़ा तो कुछ नहीं था। सुबह की बेड टी नहीं आई थी। दूध नहीं आने के कारण ब्रेक-फास्ट में सिर्फ टोस्ट और बटर। अंत में होटल का भाड़ा देते समय रिसेप्शनिस्ट और टैक्सी के दलाल ने मिलकर दो गुना किराया वसूला।
       होटल बॉय ने कहा, “ सर,अब शादी का मौसम चल रहा हैं, टैक्सी मिलना मुश्किल हो रहा है।असीम ने मन ही मन में सोच लिया था,भुवनेश्वर आयेगा तो ऐसी होटलों में नहीं रहेगा इतना आभिजात्य संपन्न नहीं था,फिर भी उससे ज्यादा अभिजात्य दिखाने की होड़ कर रह था। तथापि होटल में गच्छित संपत्ति निश्चित रूप से कम होगी क्योंकि उसकी यह दौड़ प्रतियोगिता और असफलता असीम की आँखों में पड़ी थी, फिर भी इस होटल के चयन करने का कारण इसकी सुंदरता थी और इस होटल के साथ अपना सामंजस्य बैठा पाया था। अपने साथ होटल का सामंजस्य? अणिमा होती तो असीम की अब्सर्र्डीटी को देख कर हंसती। अनीमा कौन? और कोई नहीं, असीम की पत्नी।
                  तो फिर अनीमा की बात को रहने देते हैं। कारण इस कहानी में उसका प्रवेश नहीं है। अब कहानी में असीम की दुर्दशा की बात। असीम की दुर्दशा लेकिन यहाँ खत्म नहीं होती है, टैक्सी को एक दिन के लिए भाड़े पर लिया था और खुद चलकर आ रहा था। कार में बैठते समय उसे हल्का लग रहा था और इससे पूर्व जो घटना हो गई थी, उसे दुर्घटना सोचने लगा। उसने हाथ की घड़ी पर नज़र डाली, 8 बजने जा रहे थे। ऑफिस खुलने के लिए और दो घंटे बचे थे और बाबू लोग आने के लिए 3 घंटे बाकी थे। ऑफिसर चार घंटे के बाद भी आ सकते हैं अथवा एक साथ में लंच के बाद। वह इतनी जल्दी क्यों आ गया था,होटल में बैठकर कुछ फोन करता तो अच्छा होता, ऐसा सोच रहा था वह। अवश्य उसका व्यक्तित्व ऐसा था कि वह कुछ भी निर्णय नहीं ले पा रहा था और बाद में पश्चाताप कर रहा था क्योंकि ऐसा निर्णय लिया था। अंत में,वह अपने मन को सांत्वना देने लगा कि होटल में होता तो उसे कोई फोन कनेक्शन नहीं मिलता।
            उसने अपनी कार को एक जगह पर खड़ा किया और दरवाजा खोलकर बाहर निकलते समय उसे याद आने लगा था कि ओड़िया आधुनिक कविताओं में ऐसी परिस्थितियों का चित्रांकन होता है। नहीं तो,ओड़िया कवि क्यों प्राय: कार का दरवाजा खोलकर नीचे उतर कर पृथ्वी से आमना-सामना करते हैं अथवा हवाई जहाज से ही ओड़िशा को देखते हैं,यह महत्त्वपूर्ण बिन्दु है कहने के लिए वे साहित्य,या राजनीति,शहर,अर्थनीति,मौसम, क्रिकेट हर विषय पर कुछ बिन्दु रखते हैं, चर्चा शुरू करने के लिए। असीम के व्यवसाय में भिन्न-भिन्न रुचि के लोग होते हैं और उनके साथ अलग-अलग विषय पर अपना आधिपत्य दिखाने के लिए उसे कितने बिन्दुओं पर महारत हासिल करनी पड़ती है।
            लेकिन साहित्यिक विषय पर इन पॉइंटों को वह और व्यवहार नहीं करता है। एक बार कहा था सेक्रेटेरिएट में, एक प्रसिद्ध कवि के सामने। बताइए हमारे कवियों ने शगड़ (बैलगाड़ी), रिक्शा अथवा स्कूटर पर चढ़े बिना सीधे कार से उतरते हैं क्यों, कविता में ? कितने दिन इस तरह ब्यूरोक्रेसी से अधुसित होकर रहेगा ओड़िया साहित्य, कितने दिन? ओड़िया को छोड़ दीजिए,दूसरी भाषा में देखिये, ब्यूरोक्रेटों का साहित्य में इतना प्रवेश नहीं है जबकि ओड़िया साहित्य में पहले से अंत तक ब्यूरोक्रेटों की भरभार ही भरभार है। यह कहने के बाद उसने देखा कि गलत जगह पर उसने गलत बात कह दी है। उसका इस तरह बोलना उचित नहीं था इस वजह से उसके कंटेक्ट और काम के नहीं रहे। उस दिन से असीम ने साहित्यिक चर्चा में दखल देना बंद कर दिया।
            असीम अपने कॉलेज जीवन में अंततः प्रेम करते समय और प्रेमिका की शादी करने के बाद दो-तीन कविताएं नहीं लिखी होगी, ऐसा नहीं हो सकता। लेकिन वह कवि नहीं है। हाँ साहित्य समझता है वह,फिल्म भी समझता है। वह बहुत कुछ समझता है,टेनिस समझता है, क्रिकेट समझता है। उसे पता है बच्चों के खेल के सब छोटे-मोटे हिसाब,वह ब्रेन लारा से हेग्स ब्राउन, लेपर ब्रुगुरा तक सब के बारे में गप मार सकता है। वह खेल, परिवेश, सुरक्षा, स्वास्थ्य, साहित्य से राजनीति तक हर विषय की छोटी-छोटी खबर रखता है, उसके दोस्त लोग उसे कहते हैं एनसाइक्लोपेडिया, अवश्य यह उसके व्यवसाय के लिए बहुत जरूरी है।
            असीम अपने जीवन में कुछ नहीं बन पाया। मैट्रिक फर्स्ट डिवीजन में पास किया था। पिताजी की इच्छा थी कि वह डॉक्टर बने,इसलिए साइंस लेकर पढ़ा। आई.एस.सी. पास करने के बाद मेडिकल में एडमिशन नहीं हो पाया,आवश्यक परसेंटेज के अभाव से,उनके समय में प्रवेश परीक्षा का चलन नहीं था। क्लास में नाम लिखवा दिया। पापा की आशा थी कि IAS होगा, लेकिन नहीं हो पाया। बी.ए. के बाद उसने एम.ए किया। थर्ड डिवीजन पाने के बाद लेक्चरशिप की आशा छोड़ दी थी।
            तो फिर क्या बता असीम, म्यूनिसिपालीटी में क्लर्क? प्राइवेट स्कूल में मास्टर? साइकिल पर सवार होकर सब्जी का झोला पकड़ कर सावित्री अमावस्या के लिए फल और चूड़ी खरीदता? लेकिन भाग्य पर,असीम विश्वास करता है। आई.ए.एस. नहीं बन सका डॉक्टर नहीं बना। आज लेकिन हजारों आई.ए.एस., डॉक्टरों से ज्यादा अच्छा है,अपना स्वाधीनता के साथ। दिल्ली में कानटपलेस के पास घर भाड़े पर लिया है, कार खरीदी है, प्रायः हवाई जहाज से भुवनेश्वर आता-जाता है। वहाँ अच्छा होटल में रुक सकता है। कार रिजर्व करके इधर-उधर आता-जाता है, उसके भाग्य में ये सब था।
            लेकिन उसके पास एक चीज नहीं है, क्या? असीम को पूछने से वह नहीं कह सकता, वह क्या है? पत्नी का प्यार? नहीं, नहीं, उसकी पत्नी उसे बहुत प्यार करती है। रुपया-पैसा? उसका बिजनेस बहुत अच्छा चल रहा है। वह भी चिंता की विषय नहीं है, उसका मान-सम्मान? उसे आभिजात्य क्लब में मेम्बरशिप मिल चुकी है, तो फिर? उसकी क्या व्यर्थता? क्या उसकी अप्राप्ति?
            असीम नहीं जानता है,अनुभव कर सकता है,लेकिन पहचान नहीं पाता। पकड़ नहीं पा रहा है ऐसा प्रतीत हो रहा है। ऐसा जीवन उसे जीना नहीं था, दूसरा कोई जीवन तो? दूसरे रूप से? किस रूप में? असीम को नहीं पता वास्तव में नहीं जानता है।
            गाड़ी से उतरकर असीम ने दरवाजा बंद कर दिया था। भुवनेश्वर कितना बड़ा हो गया है। पढ़ाई करते समय वह रेवेंसा से कभी-कभी आता था। बहुत छोटा शहर था तब। दोपहर में बहुत सुनसान रहता था रास्ता। लड़कियां डरती थीं अकेली जाने के लिए। असीम ने अपनी घड़ी देखी। नहीं, बहुत समय है सेक्रेटेरिएट खुलने को। स्वामीनाथन आते-आते ग्यारह बजेंगें। अवश्य स्वामीनाथन के पास जो काम है बहुत ही छोटा है फिर भी कम कष्ट-दायक नहीं है। कुछेक वाक्यों और एक हस्ताक्षर का काम। लेकिन उन कितने कम अक्षरों पर निर्भर करता है देश के कागज उत्पादन की सांख्यिकी और आर्थिक अवस्था। अमेरिका की साइंस कंपनी ने भारत में पूंजी निवेश किया, मुक्त अर्थनीति सारिटन कंसलटेंसी का कारोबार और असीम को भी पैसों का मुनाफा।
            सारिटन कंसलटेंसी के मिस्टर बेहेरा उससे पहले कह चुके हैं, नो वर्क, नो पेमेंटबेसिस वाले कंट्रेक्ट। इसलिए अभी तक सारा खर्च असीम के हाथों से ही हुआ है। काम है, अमेरिका की सारिटन कंपनी भारत में कागज का कारख़ाना खोलेगी साधारण कागज नहीं,टिशू पेपर,न्यूज पेपर वगैरा । सौ प्रतिशत निर्यातित इस कारख़ाने के लिए कंपनी ओड़िशा सरकार के साथ राजीनामा कर चुकी है। लेटर ऑफ इंडेंट पा चुकी है,सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, सरकार उसे 100 एकड़ जमीन देने के लिए भी तैयार है। लेकिन प्रोब्लम तहसीलदार स्तर पर हो रही है, तहसीलदार बिलकुल जमीन अधिग्रहण में सहयोग नहीं कर रहा है। लिखकर भेजा है उस जमीन में दो मंदिर, एक मस्जिद और एक निर्माणाधीन गिरजाघर है। उसके अलावा, जमीन गोचर होने की वजह से गाँव के लोग आपत्ति कर सकते हैं। उसके बाद तहसीलदार ने उस रिपोर्ट में अपने अधिकार के अंतर्गत मंतव्य भी दिया हैं कि यहाँ पेपर मिल खोलने से आस-पास के एरिया का परिवेश दूषित होगा।
            असीम का काम है, रेवन्यू विभाग से जैसे तहसीलदार के पास उस रिपोर्ट को सख्त मंतव्य के साथ लौटाकर निर्देश दिए जाए कि तुरंत जमीन अधिग्रहण करने में तहसीलदार सहयोग करें, उसकी व्यवस्था करने से इतना काम सब हो सकेगा, मात्र स्वामीनाथन के एक हस्ताक्षर और कुछेक वाक्यों में।
            स्वामीनाथन का चेहरा सड़े हुए बैंगन की तरह दिख रहा था और बिलकुल वैसा ही था। 3 पैग रम पीने के बाद भी उसमें कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया, यह देखकर असीम ने दूसरे तरीकों का प्रयोग करने के लिए सोचा। स्वामीनाथन की बेटी अमेरिका में है, असीम एक एजेंसी को जानता है, सोचकर कहने लगा जो सरकारी दाम से ज्यादा देकर डालर खरीदते हैं। वास्तव में यह एक गैर-कानूनी कारोबार है। तब स्वामीनाथन के काम में आ सकती है। लेकिन स्वामीनाथन ने कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
            स्वामीनाथन की इंटरकास्ट मैरिज हुई थी। एम.जी.रामचंद्रन के जमाने में तमिलनाडु सरकार का ध्यानाकर्षण करने के लिए स्वामीनाथन ने एक हरिजन लड़की से शादी की थी परवर्ती समय में करुणानिधि सरकार के साथ उसका जमा नहीं। उस दिन से किसी अदृश्य कारणों से तमिलनाडु से निर्वासित हो गया स्वामीनाथन। एक तरफ हरिजन लड़की से शादी करने से अपने जात-बिरादरी से अलग होने का क्षोभ, दूसरी तरफ तमिलनाडु से निर्वासन। सारी कलकुलेशन फेल हो गई थी स्वामीनाथन की। असीम ने उससे कहा, दिल्ली में उसकी अच्छी लॉबी है। अगर स्वामीनाथन चाहेगा तो वह कोशिश करेगा उसका तमिलनाडु ट्रान्सफर करवाने में। स्वामीनाथन बिलकुल भी उत्साहित नहीं हुआ असीम की बातों से जबकि सबको पता है राजस्व मंत्री के साथ स्वामीनाथन की नहीं पट रही है, चीफ सेक्रेटेरी के साथ भी।
            इस बार असीम को शंका होने लगी। स्वामीनाथन ने आज निश्चय वह दृश्य देखा है। नहीं,तो इतने लोभनीय प्रस्ताव में थोड़ी-सी भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की उसने? शायद सोच रहा है कि असीम में वह कैलीबार नहीं, बेकार में बक-बक कर रहा है। अवश्य असीम पहली बार स्वामीनाथन के संपर्क में आया है। लेकिन किसे पता था, स्वामीनाथन असीम को उस हालत में देख लेगा।
            कार खड़ी करके रास्ते में खड़ा था असीम, एक-दो बसें चली गई थी असीम को छोड़कर। एक रिक्शा का चक्का फट गया था,दूध लेकर जा रहा बच्चा अन्यमनस्क होकर असीम के साथ धक्का खाते-खाते रुक गया था। असीम जब खुद के पास लौट आया, उसने खुद को कार से थोड़ी दूर पाया। पास में एक मार्केट था,ज्यादा दुकानें नहीं खुली थी,एक सैलून वाला दुकान खोलकर बैठ गया था। वहाँ ग्राहकों की लाइन थी। एक डेरी दूध विक्रय केंद्र और एक मनोहारी दुकान खुली थी,ग्राहक नहीं थे। मनोहारी दुकान के सामने बोर्ड लटका हुआ था पीसीओ,एसटीडी,आईएसडी,आटोमेटिक ज़िरॉक्स। असीम किसे फोन करेगा? उसने अपनी हाथ घड़ी का बटन दबाया था, घड़ी के स्क्रीन पर जितने फोन नंबर दिखाई दिए उन किसी भी नंबर पर फोन करने का आवश्यकता अथवा औचित्य नहीं समझ पाया असीम ।
            तो क्या उसका कोई दोस्त या रिश्तेदार नहीं हैं जिसके साथ असीम बात कर पाएगा? असीम ने थोड़ा सोचा और उसे अहसास हुआ। नहीं, नहीं है। एक भी नहीं! बहुत दिनों से दोस्तहीन असीम, ऐसे भी भुवनेश्वर में उसकी जान-पहचान वाले कॉलेज जमाने के तीन-चार दोस्त भी हैं,एक फेब्रिकेशन वर्कशाप दिया है पुराने भुवनेश्वर में। एक की सरकारी नौकरी है दो-तीन के बड़े-बड़े घर हैं। एक कैरियर सर्विस ट्रैवल एजेंसी खोलकर बैठा है। बाहर में उसका व्यवसाय इतना सम्मान जनक नहीं होने पर भी बहुत पैसे कमाता है वह।
            उनके साथ कभी-कभी रात को पार्टी अरेंज करता है असीम। बहुत ज्यादा शराब पीनी पड़ती है। थोड़ी-बहुत चिकन और चपाती खाता है। विभिन्न प्रकार की अश्लील बातचीत होती थी और कभी-कभी उल्टी और खुमारी के अलावा उसे और कुछ नहीं मिलता। नहीं, उनको अब फोन करने की आवश्यकता नहीं थी असीम को।
            अचानक असीम को याद आया और घूमना ठीक नहीं होगा। उससे अच्छा है पेट्रोल पंप जाकर डीजल भरना। लौट आया था वह कार के पास और आज का दिन अच्छा नहीं था। कार स्टार्ट नहीं हुई, एक बार, दो बार, तीन बार, कोशिश करने पर भी गर्जन तक नहीं कर पाई। रबिश! असीम को बहुत गुस्सा लगा और नीचे उतरकर उसने एक लात लगा दी। असीम अब  क्या करेगा होटल में खबर करेगा कि कार खराब हो गई? ट्रैवल एजेंसी के लोग आएंगें तब तक इंतजार करेगा असीम। इस कार में लॉक लगाकर रिक्शा किराया कर होटल चला जाएगा? असीम ने सोचकर निष्कर्ष निकाल लिया कि कुछ करने से भी आज स्वामीनाथन के साथ एपाइंटमेंट नहीं हो पाएगा। बिना कार में स्वामीनाथन के पास जाने का सोच भी नहीं पा रहा था। शायद रिक्शे में जाने से काम नहीं होगा। हमेशा के लिए इंप्रेशन खराब हो जाएगा।
            आज का दिन अच्छा नहीं है। नहीं तो तीन पैग लेकर भी स्वामीनाथन ऐसे बैठा है जैसे किसी ने उसका पॉकेट मार दिया हो। कैसे बात शुरू करें, असीम सोच नहीं पाया। आज निश्चित रूप से उसे होटल में असीम को स्वामीनाथन ने देख लिया है। आज का दिन वास्तव में अच्छा नहीं था।
            असीम की नजरें एक ऑटो गैरेज पर पड़ी थी। मैकेनिक दूकान खोलकर अगरबत्ती जला रह था। एक बच्चा झाड़ू लगा रहा था। बहुत छोटा गैरेज था। लेकिन फॉर व्हीलर गैरेज में,कम पैसों में काम खत्म होने के बाद में होटल जाकर बातचीत कर सकता है वह ट्रैवल एजेंसी के साथ। गैरेज के मैकेनिक ने बोनेट खोलकर देखा, ना! तेल नहीं आ रहा है। अंदर से खोलकर देखना पड़ेगा, आधा घंटा लगेगा, सर।
            आधा घंटा, घड़ी देखने लगा असीम। नहीं, नहीं लेट नहीं होगा। स्वामीनाथन ऑफिस आतेआते ग्यारह बज जाएंगे। तब तक इस आधे घंटे में स्वामीनाथन को वशीभूत करने के तरीकों के बारे में सोचा जा सकता है।
            स्वामीनाथन के पास अपनी बात कैसे रखेगा, सोचते-सोचते असीम को सामने नजर आ गए थे। रास्ते के किनारे गुलगुले। बहुत दिन हो गए गुल-गुले खाए हुए। उसका यौवन, उसका कॉलेज जीवन, कटक शहर में बिताया स्मरणीय पखाल के जीवन के साथ-साथ गुलगुलों की स्मृति यादकर उसके मुंह में पानी भर आया।
            गंदे अलुमिना गिलास में पानी देकर गया था होटल बॉय। वह पानी पिएगा असीम? आज से बीस साल पहले बिना किसी संकोच के वह पानी पी सकता था। लेकिन अब उसे बांधकर पिलाने से भी वह नहीं पी पाएगा। उसको ऐसा लगने लगा मानो पूरे राज्य के सारे कीटाणु इस पानी में आ गए हैं। इसके अलावा गिलास साफ नहीं,वह पी नहीं सकता, एक कोल्ड-ड्रिंक पी सकता है। आज से बीस साल पहले, कटक में रिक्शा वाले के साथ होटल में बैठकर गुलगुला खाने के साथ अपने सुबह का काम खत्म करता था असीम। पानमहुरी, केलों से बनाए हुए गुलगुलों का स्वाद भूल नहीं सकता वह। इस बार लेकिन गुलगुला मुंह में डालते ही समझ गया था असीम, वह स्वाद उसके नोश्लजिया के स्वाद से अलग। इतना खराब? तो इतने दिनों की स्मृति में रहने वाले गुल गुलों का स्वाद? गलत सब केवल कल्पना। इस वक्त वह कार उस रास्ते से गुजरी और कार के अंदर से निकलकर किसी ने असीम को देखा था। वह कौन? स्वामीनाथन था? मोटा, काला, चन्दन का टीका माथे पर सफ़ेद हाफशर्ट, शायद स्वामीनाथन।
            तब बूढ़े ने देख लिया असीम को, रास्ते के किनारे होटल में गुलगुले खाते समय। और खबर लेगा? शायद काम नहीं हो पाएगा, इतना खर्च हुआ वह अलग। सब पानी में बह जाएगा, मन खराब हो गया असीम का। आज का दिन ही अच्छा नहीं था।
            स्वामीनाथन तीन पैग के बाद भी गुम-सुम बैठा हुआ था। असीम अपना पहला गिलास भी अब तक खत्म नहीं कर पाया था। वास्तव में ऐसी पार्टियों में असीम बिलकुल नहीं पीता था केवल पीने का ढोंग करता था। असीम को बिलकुल नशा नहीं हुआ था, लेकिन स्वामीनाथन को? उसे क्या नशा हो गया है? तो फिर बिलबिला क्यों नहीं रहा है? हँसता नहीं? रोता नहीं? ऐसे जड़ भरत की तरह बैठा हुआ है।
            स्वामीनाथन असीम को घास नहीं ड़ाल रहा है? नहीं। कौन-सा बड़ा आदमी है स्वामीनाथन? साले ने ब्राह्मण होकर हरिजन स्त्री से शादी की है, वह भी फिर प्यार का चक्कर होता तो अलग बात नौकरी में प्रमोशन पाने के लिए। साला चीफ सेक्रेटेरी के साथ नहीं पटता है इसलिए दिल्ली जाने के लिए कोशिश कर रहा है। दिल्ली में तेरे लिए चेयर खाली है, साला, रुक जा। खुद के लिए अपने राज्य में जगह नहीं। अपने आपको वी.आई.पी. सोच रहा है? एरिस्टोक्रेट? मैं जानता हूँ तुम्हें? घर में चारुपानी भात और सजना आलू का सांबर खाता होगा। यहाँ स्कॉच व्हिस्की मांग रहा है। क्यों न ओल्ड मंक गोल्ड, थ्री एक्स मुंह में नहीं जा रही है।
            स्वामीनाथन वैसे ही बैठा है। इधर-उधर नहीं, बहुत क्रोधित हो गया था असीम। चिल्लाकर कहने लगा, आपने मुझे सुबह देखा था मिस्टर स्वामीनाथन? आज सुबह? मैंने आपको देखा था आप सफ़ेद कार में जा रहे थे। शरीर पर कुछ लपेटा हुआ था। शायद धोती पहनी हुई थी रास्ते के किनारे होटल के बाहर बेंच पर बैठकर मैंने गुलगुला खाते समय आपको देखा था। यू नो गुलगुला? तमिल में क्या कहते है पता नहीं, मलयालम में अन्नीयापम।
            फिर भी स्वामीनाथन ने कुछ नहीं कहा। इस बार असीम के हिलाने से उसकी नींद टूट गई और वह चौंक गया। जम्हाई लेते हुए कहने लगा,प्लीज 5 मिनट बाद मुझे उठा देना। मैं सो रहा हूँ। असीम आश्वस्त हो गया। नहीं! तब स्वामीनाथन नहीं सुन पाया है मेरी बात। बाल-बाल बच गया असीम को मालूम है, बहुत कष्ट होने पर भी मुखौटा उसके चेहरे पर इस तरह चिपक गया है कि ज्यादा समय उसे खोलकर नहीं रख पाएगा वह। अटपटा-अटपटा लगने लगेगा। सोए हुए स्वामीनाथन को चादर ओढ़ा दी उसने।  सोता रहे बेचारा बहुत काम की चीज है।

 

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