दोपहर न देखने वाला मनुष्य

दोपहर न देखने वाला मनुष्य

प्रमोद ने चारों तरफ नज़र घूमाकर वर्कशॉप को देखा। यही है उसकी नौकरी की पहली जगह है? आईटीआई की ट्रेनिंग करते समय उसने नौकरी करने का सपना देखा था। एक शहर में उसका अपना घर होगा,अपना घर। जिसका वह राजा होगा। वहाँ उसको किसका हुक्म मनाने की जरूरत नहीं होगी,किसी के साथ एडजस्ट करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। पास में होंगे पर्याप्त पैसे और वह अपनी इच्छा के मुताबिक चल सकेगा- खर्च कर पाएगा। अपने खर्चे के लिए उसे और न तो अपने पिता और न ही अपने बड़े भाई के पास हाथ पसारने पड़ेंगे।
            उसने अपने शरीर पर वर्कशॉप का ड्रेस पहना हुआ था। वर्कशॉप के सामने टीन की चद्दरों से बने चालघर में खड़े होकर उसने सिगरेट सुलगाई। गेट के सामने एक दरबान बैठा हुआ था। प्रमोद ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। एक हाफ पैंट पहना हुआ आदमी अपने काले हाथ साफ करते हुए उसकी तरफ देखते हुए चला गया। वह कुछ भी नहीं बोला। वर्कशॉप के पीछे लोहे के टुकड़े, लेद मशीन, आक्सीएसिटिलीन गैस से जलते हुए लोहे दिखाई दे रहे थे। उसकी टेबल के चारों तरफ लकड़ी की बनी हुई अनेक अलमारियाँ थी। हर अलमारी के ऊपर लेबल लगे हुए थे, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, टिंबर वुड, आटोसेक्शन।
उसके ऑफिस के चैंबर में घुसते समय इंजीनियर नहीं था पास वाले टेबल पर बैठे हुए बाबू ने एपोइंटमेंट ऑर्डर की चिट्ठी को निहारते हुए कहा, “इंजीनियर साहब को दिखाओ।
: “इंजीनियर साहब कहाँ पर है?’
: “वर्कशॉप में होंगे कहीं?”
: “मैंने तो उन्हें देखा ही नहीं ! थोड़ा बता देते तो?” उस आदमी ने प्रमोद की तरफ कुछ समय के लिए देखा। वह बाबू गुस्से में देख रहा है या कौतूहल भरी आँखों से, प्रमोद को समझ में नहीं आया। उस बाबू ने बड़े ही ठंडे लहजे में कहा, “उस कुर्सी में बैठो। इंजीनियर साहब आएंगे अभी।
            प्रमोद इंजीनियर के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया और वह बाबू वर्कशॉप के भीतर लोहे पीटने की आवाज के भीतर भी टाइप करता जा रहा था। प्रमोद ने कभी भी इंजीनियर को नहीं देखा था। वह कैसा दिखता है? मोटा था पतला? काला या गोरा? गुस्सैल या शांत? कैसे दिखता है वह? अचानक एक आदमी तेजी से ऑफिस के भीतर आ गया। यह इंजीनियर है? कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया प्रमोद। उस आदमी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। वह की-बोर्ड की तरफ आगे बढ़ा और कहाँ से एक चाबी लेकर अलमारी को खोला। अलमारी के भीतर मोटर के मशीन पार्ट के टुकड़े भरे हुए पड़े थे। उन सामानों के भीतर खोजकर एक होज पाइप बाहर निकालकर उठ खड़ा हुआ। अलमारी बंद कर पीछे की तरफ मुड़ते समय प्रमोद ने उसे नमस्कार किया। वह आदमी अवश्य प्रमोद के नमस्कार से इतना आश्चर्यचकित हो गया कि उसका उत्तर भी नहीं दे पाया, सिवाय यह पूछने के कि क्या हुआ?
: “मैं नया मशीनिस्ट के रूप में भर्ती हुआ हूँ।प्रमोद ने कहा और अपना अपाइंटमेंट आर्डर उसकी तरफ बढ़ा दिया। उस आदमी ने प्रमोद के अपाइंटमेंट ऑर्डर को बिना छूए, बिना देखे बाबू की तरफ इशारा करते हुए कहा, “उस बाबू से बात करो।
            यह कहते हुए वह चला गया। प्रमोद चुपचाप बैठकर इधर-उधर देखने लगा। उसे देखकर वह बाबू मंद-मंद मुस्कराने लगा। प्रमोद के पास आकर मेल-मिलाप करने के लिए और ज़ोर से हंसते हुए कहने लगा, “आप जिसे इंजीनियर साहब समझ रहे थे, वह केवल एक ड्राइवर है।
यह बात सुनने के लिए तैयार नहीं होने पर एक क्लर्क ने कहा: तुम्हें सभी को नमस्कार नहीं करना चाहिए। लोग हँसेंगे। सोचेंगे कि तुम्हें मैनर मालूम नहीं है। केवल अपने से सीनियर को नमस्कार करना चाहिए, समझे?”
            प्रमोद को नमस्कार करना अच्छा नहीं लगता था। स्कूल में या ट्रेनिंग के समय में भी उसने अपने मास्टरों को नमस्कार नहीं किया,बल्कि उनके सामने पड़ने पर वह रास्ता बदलकर चला जाता था। यह नई जगह है, इसके अलावा इंजीनियर को नमस्ते करना उचित समझकर वह मानसिक रूप से तैयार होकर आया था।
            प्रमोद स्वभावतः चुपचाप बैठ नहीं सकता था। कभी सिर खुजलाता था तो कभी जेब से रूमाल निकालकर चेहरे का पसीना पोंछने लगता था तो कभी ऊपर सीलिंग फैन की ओर देखने लगता था। फिर कभी आँखें मलते हुए जम्हाई लेते क्लर्क से छोटे-मोटे सवाल पूछता था जैसे उसका घर कहाँ है? उसे क्वार्टर मिला या नहीं? इस कोलियरी में कितने लोग काम करते हैं ? वर्कशॉप में काम करने वाले लोगों की संख्या कितनी है? ऐसे ही बातों-बातों में सवाल पूछते समय कोई कमरे में भीतर चला गया तो वह क्लर्क चुप हो गया। क्या यह इंजीनियर है? पहले की तरह इस बार उसने ऐसा नहीं किया, नहीं तो इस बार भी प्रमोद खड़े होकर नमस्कार कर लेता। इस बार वह जान-बूझकर क्लर्क की ओर देखने लगा। इशारों से उसने पूछा कि वह कौन है? क्लर्क का संकेत पाकर उसने खड़े होकर नमस्कार करते हुए कहा: सर, मैं मशीनिस्ट .......
            आधे-घंटे पहले की सारी बातें थी। अब प्रमोद खड़े-खड़े सिगरेट का लुत्फ़ ले रहा था कि पीछे से पीठ पर हाथ रखते हुए क्लर्क ने कहा, “चलिये, आपको आपका क्वार्टर दिखा देता हूँ।
            घर के बारे में कुछ खास सोचने का अवसर प्रमोद को नहीं मिला था। गाँव में उसके ऊंचे आटू-घर में किस तरह सामान पत्र भरे रहते थे, कई बार घर में गोबर लीपा हुआ होता था, झाड़ू बुहारा जाता था, खाट के ऊपर कोई साफ-सुथरा बिछौना बिछाकर चला जाता था, इन सारी बातों की तरफ उसका ध्यान नहीं जा रहा था। आईटीआई ट्रेनिंग के समय वह अपना बेडिंग और बॉक्स लेकर हॉस्टल गया था,जहां उसका इंतजार कर रही थी एक विधवा खाट, अनाथ टेबल चेयर और दीवार में लटकी हुई एक खाली अलमारी। उन्हीं खाट-टेबल और अलमारी ने बीस-तीस मिनट के अंदर ही सजे-धजे घर जैसी रौनक देना शुरू कर दिया था।
            जबकि इधर अपने क्वार्टर में प्रवेश करते समय उसे लगने लगा कि यह चार दीवारों से घिरी शून्य जगह के सिवाय कुछ नहीं है। प्रमोद को अपने जीवन के बाईस-तेईस साल की अवस्था में पहली बार अनुभव हुआ कि ईंटों की दीवारों से बने कमरे को घर बनाने के लिए बहुत कुछ लगेगा। सोने के लिए खाट चाहिए, बैठने के टेबल कुर्सी चाहिए, आगंतुक लोगों के बैठने के लिए सोफ़सेट चाहिए, बैठे-बैठे बोर होने पर दीवार की तरफ झाँकते समय देखने के लिए कुछ ग्रुप फोटो, कैलेंडर और भगवान की तस्वीरें भी लटकी हुई होनी चाहिए। चेहरा देखने के लिए दर्पण या ड्रेसिंग टेबल भी होनी चाहिए। रसोईघर को भरापूरा करने के लिए टीन के डिब्बे, स्टील के बर्तन और अन्य खुचरे सामानों की आवश्यकता होगी, नहाने के लिए स्नानघर जरूरी है, वहाँ शावर भी लगा होना चाहिए। घर खाने नहीं दौड़ेगा, उसके लिए रेडियो का गीत-संगीत सुनाई पड़ता रहना चाहिए। गर्मी के दिनों में बाहर सोने के लिए रस्सी से बुनी खाट होनी चाहिए। गर्मी से बचाव के लिए पंखा चाहिए। जबकि उसके इस फाँका क्वार्टर की- खाली दीवारों पर काले-लाल दाग,फोटो और मच्छरदानी लगाने के लिए दीवारों पर मारी हुई कीलें, घर के अंदर छोड़ा गया अव्यवहृत मैलापन, टूटे-फूटे काँच, गंदे डिब्बे, सोडा की बोतल के कॉर्क, एक विदेशी शराब की बोतल, फर्श पर बिखरे सिगरेटों के टुकड़ें, माचिस के खाली डिब्बे, एक-दो फटे-पुराने कागज। इस शून्य स्थान को घर का रूप कैसे दे पाएगा प्रमोद ! वह बस स्टैंड की दुकान पर अपना बेडिंग और बॉक्स छोड़कर आया था, उन सामानों से इस शून्य स्थान को कैसे भर पाएगा वह ? उसके लिए अब ज्यादा जरूरी था, एक झाड़ू। एक खाट। वह जमीन पर नहीं सो पाएगा। वह गंदगी बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर पाता है। उसे घर दिखाने आए एक क्लर्क ने उससे पूछा, “तुम खाओगे कहाँ पर? खाना बनाओगे?”
            खाना बनाने का काम प्रमोद को नहीं आता था। काम भले बड़ा नहीं था, फिर भी सिर पर एक बोझ की तरह लगता था उसे। खाना बनाकर खाना है- यह चिंता ही उसे थका देती थी। क्लर्क ने कहा: हाथ से खाना बनाना ठीक है। बाहर खाने से संतुष्टि नहीं मिलेगी।
            खाने में प्रमोद के लिए कोई संतुष्टिअसंतुष्टि का सवाल नहीं है। हॉस्टल से सब्जी के झोले में गिरे झींगुर को हटाकर बड़े संतुष्ट भाव से मोटे चावल की दो थाली आसानी से गटक जाता था। वह इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा है,देखकर क्लर्क कहने लगा,“होटल में खाने से तृप्ति नहीं मिलती हैं।
            उसकी इस बात का उत्तर दिए बिना वह पूछने लगा: यहाँ खाट और झाड़ू मिल जाएंगे ?”
            क्लर्क के जाने बाद बाहर आकर खड़ा हो गया प्रमोद। दो पंक्तियों में कारूगेटेड़ छप्पर से बने बरामदे और बगीचे विहीन क्वार्टरों के बीच में कोई रास्ता नहीं है, केवल एक औरत बाल खुले रखकर रस्सी की खाट पर बैठी हुई थी ऊपर की ओर मुंह किए। उसके पीछे और कोई स्त्री बैठकर जूएँ बिन रही थी। नया-नया बैठने सीखा नंगा बच्चा एक क्वार्टर के चौखट के पास बैठकर मिट्टी खा विहीन था। घास विहीन सूखे मैदान में गाय चर रही थी, उसकी पीठ पर एक काला कौआ बैठा हुआ था। एक आदमी नहा कर गमछा पहने लौट रहा था, कंधे पर भीगी धोती, दाहिने हाथों में एक बाल्टी पानी तथा बायाँ हाथ थोड़ा ऊपर उठा हुआ था। एक औरत अपने घर के आगे झाड़ूकर रही थी।
            कुल मिलाकर सारा परिवेश उसके मन में खां-खां कर रहा था। उसे क्यों फांका-फांका लग रहा था, समझ में नहीं आ रहा था, एक स्फूर्तिहीन मैले आवरण का दृश्य ऐसा लग रहा था मानो पीला पड़ा हुआ कोई फोटो। प्रमोद अपने ट्रेनिंग के समय से ही अपने तीस-पैंतीस वर्गफुट वाले घर के परिवेश से ट्रेनिंग स्कूल के कैम्पस के बाहर स्कूल आने-जाने वाली फ्राक पहनी लड़कियों की उभरी छातियाँ, शर्मीली मुस्कुराहट, धीमी-धीमी चाल पर किसी की विकल दृष्टि और ट्रेनिंग स्कूल में वर्कशॉप के दिन चार-पाँच घंटे प्रेक्टिकल बोरड़म के भीतर अस्त-व्यस्त होकर नौकरी के समय का इंतजार करती निगाहों से परिचित था। वह सोच रहा था कि नौकरी ले आएगी उसके लिए सुख, स्वच्छंदता और स्वाधीनता। हॉस्टल के किसी ट्रेनिंग सहपाठी का ट्यूशन पढ़ती लड़की से प्रेम या किसी बार्डर वाले गाँव में रहने वाली लड़की जो चिट्ठी नहीं दे रही है, उसकी प्रेम कहानी सुनते समय अपनी आँखें बंद करने वाला प्रमोद एक अद्भुत सपने के राज्य में खो जाता थाबिना परिश्रम के मिलने वाला एक सुंदर क्वार्टर, क्वार्टर में भरे साफ-सुथरे सामान-पत्र, क्वार्टर के सामने बगीचे, घर में एक फैशनेबल और हर समय टीप-टॉप रहने वाली सुंदर स्त्री देखने को मिलती थी। जबकि आज वह कॉरुगेट छप्पर वाले घर के सामने सिमट कर खड़ा है,जिसके भीतर है गंदगी,धूल-मिट्टी और खा जाने वाली शून्यता।
            प्रमोद सोचने लगा, यहाँ से हॉस्टल का जीवन ज्यादा अच्छा था। जबकि ट्रेनिंग के समय वह उस दमघोंटू जीवन से मुक्ति चाह रहा था। आज जब उसे उस परिवेश से मुक्ति मिल गई तो फिर से अपने अतीत जीवन को लौट जाने के लिए वह छटपटा रहा है। जीवन भी कैसा है, विचित्र, अति-विचित्र। वर्तमान के ये क्षण यंत्रणादायक है, जबकि अतीत ही सुखों का भंडार था, सोचते हुए ज़ोर से सांस छोड़ते समय उसे सुनाई पड़ा, जूएँ निकालती स्त्री के झाड़ू करने वाली स्त्री से बातचीत के स्वर,हे! रुकुणा की माँ, यह नया आदमी कौन आया है?”
            प्रमोद ने पीछे मुड़कर उन स्त्रियों की ओर देखा। प्रमोद के साथ चार आँखें होते ही शर्माते हुए जीभ निकालकर उस स्त्री ने सिर पर ओढ़ना डाल दिया। सारा दृश्य प्रमोद को देहाती और हास्यास्पद नजर आने लगा। एक इंजीनियर ने पूछा : यह तुम्हारी पहली नौकरी है?”
            पूछने के दौरान दिन से ही समय पर ड्यूटी जाने लगा प्रमोद। उसने केवल सिर हिलाकर हाँ कह दिया था। इंजीनियर का पृथुल शरीर। उसे बीड़ी पीते देखना उसके लिए असंभव-सा था। वह पांवों में खदान-अंचल में जाने के लिए सेफ़्टी जूता पहने हुए था। कल तो फुल पैंट पहना हुआ था, आज हाफ पैंट और हाफ शर्ट पहने हुए है, शायद अंडर ग्राउंड जाने का प्रोग्राम हो।
            प्रमोद ने अपने नीले रंग का वर्कशॉप ड्रेस पहना था। नीले फुल पैंट और फुल शर्ट में कम से कम दस-पंद्रह पॉकेट होंगे। इस वर्कशॉप में किसी ने भी ऐसा वर्कशॉप ड्रेस नहीं पहना था। उनकी अचरज भरी निगाहों को देखते ही प्रमोद समझ गया था कि उनमें से किसी ने भी शायद यह पोशाक नहीं देखी होगी।
            एक इंजीनियर ने प्रमोद को कहा, “ देखिए मिश्रा,ये तुम्हारी पहली नौकरी है। तुमने अपना पहला जो जीवन बिताया है,वह थ्योरी पाठ था अबसे तुम्हें प्रेक्टिकल जीवन जीना होगा। इसके बाद तुम्हारी शादी होगी, घर-संसार बसाओगे, बाल-बच्चे होंगे और तुम्हारा दायित्व,भी बढ़ जाएगा। अभी तक तुमने सीधा-साधा जीवन बिताया है, मगर अब से तुम्हें कुछ भी काम करने से पहले पाँच दस बार सोचना होगा। जो भी हो, तुम अपने इस वर्कशॉप को प्रेक्टिकल जीवन समझ लो और सच में यही तुम्हारा प्रेक्टिकल जीवन है।
 इन सारी बातों का कोई मतलब नहीं था । नहीं कहने से भी चल जाता, प्रमोद को इन बातों की जानकारी है। फिर भी सिर हिलाना होगा, सोचकर उसने अपना सिर हिलाकर हामी भरी। इंजीनियर ने उसे बुलाकर एक काले गंदे शर्ट और बहुत दिनों से साफ नहीं हुए भूरे रंग के पैंट पहने एक मोटे आदमी के साथ उसका परिचय कराते हुए कहा: “ये हमारे नए मशीनिस्ट नरहरी नाएक। तुम इनके पास कुछ दिन काम करो। फिर, तुम्हें भी एक हेल्पर दिया जाएगा और फिर तुम अकेले काम करोगे।
नरहरी नाएक बेंच लेथ मशीन चला रहा था। प्रमोद के ट्रेनिंग स्कूल के वर्कशॉप में पावार लेथ मशीन ही था। बेंच लेथ मशीन नहीं चलाने पर भी प्रमोद को आत्म-विश्वास था कि वह मशीन चला सकता है। नरहरी से उसने पूछा, “आपने कौन से स्कूल से ट्रेनिंग ली है?”
            प्रमोद की बात सुनकर स्तब्ध रह गया नरहरी और बड़बड़ाते हुए इधर-उधर देखने लगा जैसे वह बात बिलकुल ही अबोध हो। नरहरी का हेल्पर एक अभद्र हंसी हँसते हुए कहने लगा, “हमारे गुरु तो अंगूठा छाप है-बिना पढ़े हजारों कमाते हैं, पढ़ाई करने का क्या फायदा?” नरहरी ने थोड़े विव्रत भाव से कहा, “ एक्सपीरियन्स। समझे? एक्सपीरियन्स। तीस वर्ष हो गए काम करते-करते। जब तुम बच्चे होंगे, तब से सत्रह साल से यही काम कर रहा हूँ।
            इस अनपढ़ आदमी के अंदर में प्रमोद को काम करना पड़ेगा ! प्रमोद की शिक्षा, दीक्षा, ट्रेनिंग सारी चीज़ें कोई मायने नहीं रखती है ? यह सोचकर उसके मन में क्षोभ भरा एक अभिमान जाग उठा, सारा मन क्रुद्ध हो गया। मगर दाँत भींचकर चुपचाप रह गया वह।
            नरहरी स्क्रू में थ्रेड बनाते-बनाते प्रमोद से कहने लगा, “तुम नटतैयार करो। मैं स्क्रू थ्रेड बना देता हूँ।प्रमोद ने लोहे को इस तरह ऊपर उठाया जैसे वह उसकी जांच कर रह हो। यह अनपढ़ आदमी उसे तुमकहकर बुलाता है, प्रमोद को यह बात पसंद नहीं है। दूसरा समय होता तो वह इस बारे में उसे गाली दे देता या झगड़ा कर लेता या गंभीरता से कहता, “मुझे आप और तुमकहकर संबोधित नहीं करोगे नरहरी बाबू। आप उम्र में मुझसे बड़े हो सकते हैं, मगर पढ़ाई में बहुत नीचे। आदमी की इज्जत करना सीखो।
            मगर नई नौकरी के पहले दिन वह ऐसा कुछ नहीं कह पाया। उसके ऊपर उसे इतना गुस्सा आ रहा था कि हाथ में पकड़ी लोहे की छड़ उसके सिर पर अनायास दे मारता। मगर नहीं, प्रमोद ने अपने आप को संभाल लिया।
            प्रमोद ने पूछा: ड्रिल-बिट कहाँ पर है?” पहली बार तो नरहरी ने उसकी बात को अनसुनी कर दिया। दो-तीन बार उसे पूछने के बाद नरहरी की मूर्खता उजागर हुई। उसने कबूल कर लिया कि ड्रिलबिट का नाम उसे नहीं पता था। यह नरहरी के लिए निश्चय अपमान की बात थी। नहीं तो, अपनी अक्षमता देखकर हा हाकर हंस रहे हेल्पर को नरहरी डांट कर चुप करा सकता था? प्रमोद खुश हो गया। जो भी हो, इस अनस्किल्ड अशिक्षित आदमी को काम की बिलकुल भी जानकारी नहीं है और मशीनिस्ट पद के अयोग्य है- यह बात वर्कशॉप वालों को पता चल जाएगी और वे जान जाएंगें कि नए मशीनिस्ट ने नरहरी नाएक को चने चबवा दिए! आखिरकार अपने आप खोजबीन कर ड्रिलबिट बाहर निकालते समय नरहरी और उसका हेल्पर दोनों हंसने लगे। नरहरी कहने लगा: तुम्हें बर्मा चाहिए, मुझे यह कहते? ड्रिलबिट, ड्रिलबिट कह रहे हो! समझ लो, ये सब इंग्लिश पाठ यहाँ नहीं चलेगा।
            प्रमोद ने तय कर लिया था कि आज पहले दिन वह किसी से झगड़ा मोल नहीं लेगा। उसने केवल इतना ही पूछा; “इस ड्रिलबिट की साइज क्या है?”
            नरहरी ने बिना देख कह दिया, “तीन सूत
तीन सूत मतलब?” इसबार वात्सल्य भाव से नरहरी अपने हेल्पर को कहा, “ देखो तो भगिया! अबसे इंगलिश बाबू को सूत का मतलब इंगलिश में समझा देगा?”
तीन सूत मतलब थ्री बाई फॉर या थ्री बाई सिक्सटीन? क्या कह रहे हो?”
नरहरी ने गर्व से सीना फुलाते हुए कहा, “ इतना मालूम नहीं है। तीन सूत का मतलब तीन सूत इतना जानता हूँ।
थ्री बाई फोर के लिए है यह?”
हाँ
आश्चर्य चकित हो गया था प्रमोद। ट्रेनिंग के समय प्रत्येक जॉब का साइज मापने के लिए वे लोग वर्नियर कैलीपर्स तथा स्लाइड कैलीपर्स का प्रयोग करते थे, शून्य त्रुटि निकालने के लिए परेशान हो जाते थे। उसके लेक्चरर पंडा सर किसी जॉब में इंच का हजारवां भाग इधर-उधर हो जाने पर उस जॉब को फेंक देते थे, अगर वे इस वर्कशॉप को आ जाते तो क्रोध से आग बबूला हो जाते। प्रमोद को आश्चर्य होने लगा, इतना रफ काम करने के बाद ये लोग किस तरह डिलीवरी देते होंगे!
ड्रिल मशीन चलाते-चलाते प्रमोद केवल सोचकर रहा था कौनसी बात ठीक है? ये जो उसके ट्रेनिंग के समय का थ्योरी पाठ, इतने इंच सेंटीमीटर के हज़ारवें भाग के हिस्से को नापने वाला थ्योरी पाठ, ये सब क्या निरर्थक थे ? इन सारी चीजों की कोई जरूरत नहीं है ? ये सब बिना जाने भी नरहरी नायक लेथ मशीन चला सकता है, मशीनिस्ट कहलाता है, जॉब तैयार कर सकता है। फिर क्या ठीक है ?
            दो बार लोहे का टुकड़ा काटने के बाद, एक बार माप कम होने के बाद बहुत कष्ट पूर्वक पसीने से तर-बतर होकर नट बनाते-बनाते दिन के तीन बजे गए थे और एक घंटे के बाद उसकी ड्यूटी ओवर हो जाएगी। इसी बीच नरहरी ने स्क्रू थ्रेड तैयार कर लिए थे और दो-तीन बार प्रमोद के पास घूमकर चला गया था दो-तीन बार आकर कुछ कहने की भी चेष्टा कर रह था। मगर एक अवज्ञा से- जो अवज्ञा दाँत भींचकर चिबुक और भौहों से उसने उस अनस्किल्ड आदमी की उपेक्षा की थी।
            नट को इधर-उधर घुमाकर देखा नरहरी ने, फिर अवज्ञापूर्वक अपने हेल्पर को बुलाकर कहा, “समझे रे, बाबू को पूरा दिन लग गया एक नट तैयार करने में बड़ा आया है ट्रेनिंग वाला। ऐसा नट बनाया है कि उसमें स्क्रू थ्रेड पर फिट नहीं आएगा।प्रमोद आश्चर्यचकित रह गया और क्रोध से कहने लगा, “मैंने माप कर देखा है मेजरमेंट ठीक है। ठीक क्यों नहीं होगा?” नरहरी स्क्रू थ्रेड लाकर फिट करने लगा,मगर वह उसमें फिट नहीं हुआ। जॉब के साइज से स्क्रू थ्रेड की साइज कम थी, ऐसे कैसे हुआ? प्रमोद के यह बात कहने से नरहरी गुस्से में कहने लगा, “साला, मेरी गलती पकड़ रहा है?”
प्रमोद को उत्तेजित करने के लिए इतना कहना ही काफी था। उसे उसके बाईस साल की उम्र में किसी ने भी इस अभद्र भाषा में चैलेंज नहीं किया था। धीरे-धीरे स्नायुओं में होने वाले संचरण से कान लाल पड़ गए थे। बारिश की बड़ी-बड़ी बूदों की तरह गिरने लगी थी नरहरी की गालियाँ। उसके सामने नरहरी धुंधला दिखने लगा था और उसके बदले में जो उसके सामने खड़ा था, सारे शरीर पर लंबे-लंबे बाल, बड़े-बड़े धारदार नाखून, सामने के सारे बड़े-बड़े दांत, तेज, दोनों आँखें मानो ज्वाला उगल रही हो और मानो आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रही हो, प्रतिशोध के लिए आक्रमण करने की मुद्रा में खड़ा होते समय प्रमोद ने महसूस किया कि उसके चेहरे की नसें तनकर उसे विकृत बना रही है। हाथों के नाखून लंबे होकर नुकीले होते जा रहे हो, दांत बड़े होकर शंक्वाकार हो जा रहे हो, आँखों से आग की ज्वाला निकलने लगी हो। उसने प्रचंड क्रोध से अपने हाथ में पकड़े लोहे के टुकड़े को लेथ मशीन की तरफ फेंक दिया, जिससे झनझनाहट की आवाज वर्कशॉप के सारे लोहा पीटने की आवाज को चीरते हुए आगे निकल गई और उसके बाद प्रमोद के कंठ से प्रागैतिहासिक हिंसा, युद्ध, आह्वान और नफरत के स्वर निकलने लगे।
            कुछ क्षण बाद फिर से विपरीत हवा के बहने की चेष्टा के भीतर, फिर से टुकड़े-टुकड़े समयहीन शोभायात्रा के भीतर पाउडर के चूर्ण के अंदर से दिखाई देने लगा था मनुष्य का चेहरा, उनके होठों से खुसर-पुसर होती बातें, आगे बढ़ते हुए हाथों को देखते-देखते प्रमोद की आँखें बंद होने लगी थीं। उन सारे शब्दों के अंदर उसका शरीर खो गया था। आँखें खोलते समय सब स्वाभाविक लगने लगा था। सबकुछ पहले की तरह लेथ मशीन, ऑक्सी एसिटिलीन गैस ट्यूब से बाहर निकलती नीली आग, ड्रिल मशीन, हथौड़ी पीटते लोग, लोहा काटने वाली मशीन में लोहे की प्लेट काटता एक आदमी, खुचरे पैसे खोकर फिर से लौटकर आने वाले की तरह मन की तह में थोड़ी-सी यंत्रणा।
            “ यह क्या हुआ है?” पूछने वाला आदमी और कोई नहीं इंजीनियर था। लोगों के घेरे में खड़ा था प्रमोद। किसी ने उसका हाथ तो किसी ने उसका जबड़ा पकड़ा था। ठीक उसी तरह बंदी था नरहरी नायक भी। उसके मुंह से अश्रव्य भाषा निकाल रही थी। इंजीनियर ने पूछा : क्या हुआ?”
            शाम के समय क्लर्क आया था प्रमोद के क्वार्टर में। उसी साज-सज्जा विहीन बिना किसी सामान वाले क्वार्टर के भीतर बड़े रूम की फर्श पर बिछाए हुए बिछौने के ऊपर दोनों बैठ गए। वर्कशॉप में हुए झगड़े-झंझट के बारे में बताने से पहले क्लर्क ने पूछा : इंजीनियर ने क्या कहा?” गर्व से प्रमोद ने कहा, “ कल से मैं खुद लेथ मशीन चलाऊँगा। नरहरी दूसरी जगह काम करेगा।
            “ आपने मगर अनुचित गुस्सा किया प्रमोद बाबू। इतना गुस्सा करना ठीक नहीं था।
नरहरी ने मुझे अभद्र गाली दी और मैं गुस्सा न करूँ?”
नरहरी-ऐसा ही आदमी है। हर समय बात करते-करते मुंह से अश्लील शब्द निकाल जाते हैं। उस बात को पकड़कर रखना ठीक नहीं हैं।
जानते हो,मुझे आज तक किसी ने भी अभद्र भाषा में गाली नहीं दी है। मैं सबकुछ सहन कर सकता हूँ,मगर किसी की भी गाली नहीं।
वह क्लर्क हँसते-हँसते कहने लगा, “ आप छोटे बच्चे हैं प्रमोद बाबू। नौकरी में बहुत कुछ सहन करना पड़ता है। यही तो पराधीनता है। आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाएंगे, देखेंगे ये सारा आत्मनिर्माण कोई मायने नहीं रखेगा। आपको बहुत कुछ सहन करना पड़ेगा, एडजस्ट करना पड़ेगा।
मगर उसके लिए गुलामी क्यों? अन्याय अत्याचार सहन करना पड़ेगा क्यों? उसके विरोध में आवाज उठाई जा सकती है।
प्रमोद के सारे तर्कों को अपनी मंद-मंद मुस्कान में उड़ा दिया और वह कहने लगा, “ आपने अभी तक किताबों में ही बैंगन देखे हैं। खेतों में बैंगन नहीं देखे हैं। एक बार जाकर देखो तो समझ में आएगा,थ्योरी और प्रेक्टिकल में कितना अंतर होता है। रिवोल्यूशन की बातें सुनने में अच्छी लगती है,मगर वास्तविक जीवन में उसका स्थान क्या है? हाऊ टू सरेंडर प्रमोद बाबू। हाऊ टू एडजस्ट विद अलाइज़मेंट? आपने आज-तक ऐसे किसी आदमी को देखा है,जिसने जीवन में कभी सरेंडर नहीं किया हो? रिवोल्ट करने वाले लोग हाई स्कूल के इतिहास से निकलकर अपने घर-बार,स्त्री और प्रेमिका के साथ मौज-मस्ती में है। रिवोल्ट कितने दिन रह सकता है? दोपहर में धूप से बचने के लिए के.सी.पाल का छाता, बारिश में बरसाती या खरगोश झाड़ी खोजने की तत्परता में सभी पीछे नहीं रहते। प्रमोद के युक्तिवादी मन ने इन बातों को मान लिया। इस विषय पर और कुछ ज्यादा कहना उसने उचित नहीं समझा। बातों की दिशा बदल गई थी। आगे जाकर राजनीति,कोलियरी के हाल-चाल,वस्तुओं के भाव-मोल की कीमत से पहुँचकर चली गई क्लर्क के व्यक्तिगत जीवन पर। प्रमोद को बातों-बातों में पता चल गया कि वह क्लर्क एक मैरिड बैचलर था। अपनी पत्नी के साथ नहीं बनने के कारण दोनों अलग रहते हैं, यद्यपि तलाक नहीं हुआ था। क्लर्क ने कहा: पहले मैं बहुत आस्तिक था। आपने शिवानंद की किताबें कभी पढ़ी हैं? मैंने अपने कॉलेज के जमाने से योग, साधना, समाधि आदि बातों पर बहुत कुछ पढ़ा था। परमात्मा के साक्षात्कार के लिए घंटों-घंटों मैं अपने कपाल के ऊपर मन को एक काल्पनिक कमल के फूल पर केन्द्रित कर रख सकता था।
 “एचीवमेंट क्या हुआ?” प्रमोद ने कुछ पूछा। एचिवमेंट? जीवन में एचिवमेंट कुछ भी नहीं होता है प्रमोद बाबू। सभी एक वृत्ताकार पाठ पर दौड़ लगाते हैं। अब समझ में आया, वे सारी आध्यात्मिक विचारधारा थी केवल एक प्रकार का रोमांटिसिज़्म।
आपकी अपनी पत्नी के साथ क्यों नहीं बनी?”
क्लर्क ने थोड़ा उदास होते हुए कहा; “आप जानते हो? मैंने सोशियोलॉजी में एम.ए. पास किया है। मेरी पत्नी और ससुराल वालों ने सोचा कि मैं एक बड़ा ऑफिसर बनूँगा,नहीं तो कम से कम एक लेक्चरर तो अवश्य ही। उन्हें क्या मालूम था मैं इस अगण्य कोलियरी में एक क्लर्क बनूँगा? इसके अलावा मेरी पत्नी आधुनिक दृष्टिकोण वाली थी। फिल्में, साड़ियाँ, गहने, घर की साज-सजावटइन सारी फैशनों में वह डूबी रहती थी। मेरी आध्यात्मिक विचारधारा उसे कतई पसंद नहीं आती थी।
अब तो आप आध्यात्मिक जगत में नहीं है। उसे बुला क्यों नहीं लेते?”
मेरी इतनी कम तनख्वाह में अपनी पढ़ी-लिखी आधुनिक पत्नी को खुश रख सकता हूँ? इसके अलावा, हमारे बीच उलझनों का इतना बड़ा पहाड़ बन गया है कि उसे सुलझाना असंभव है।
प्रमोद कहने लगा; “ आप तो कह रहे थे कि जीने के लिए एडजस्ट करना पड़ता है। आप सरेंडर क्यों नहीं कर लेते? कुछ आप एडजस्ट कर लेते तो कुछ आप की पत्नी एडजस्ट कर लेगी।दीर्घश्वास छोड़ते हुए क्लर्क ने कहा; “ जीवन बहुत विचित्र है प्रमोद बाबू। यहाँ जीवन जीना जितना सरल है,जबकि उसे भाषा में बांधना, डेफ़िनेशन या संज्ञा में नामकरण करना उतना ही कठिन है। जीवन के संबंध में ऐसी कई बातें कही जा सकती है,जो कि ध्रुव सत्य है? केवल समझ में आती है,जिंदा रहने में अनुभव कर सकते हो,केवल समझाई नहीं जा सकती और किसी को भी वे अनुभूतियाँ कम्यूनिकेट नहीं की जा सकती।
प्रमोद टेक्निकल लड़का था, मशीनों का क,, समझ सकता था अच्छी तरह से। ये सारी बातें उसके दिमाग में नहीं घुस पा रही थी, अब बोर होकर वह जम्हाई लेने लगा। आकंठ डूबते-डूबते जीवन भर जिंदा रहने की चेष्टा में जिस तरह असहाय मनुष्य अपने हाथ बढ़ाता है, वैसे ही पसीने से तर-बतर होकर क्रोध, विरक्त और असामर्थ्य से टूट गया प्रमोद। लेथ मशीन पर जिस तरह नासमझ लड़का कोई पिनियन जोड़ने लगता है तो चकरी से तालमेल नहीं बैठा पता है। गियर लीवर लगाने पर जिस तरह चकरी खुल जाती है। वैसे ही अंत में, हताशा से टूट गया प्रमोद।
            मगर ऐसा तो होना न था। काफी आत्म-प्रत्यय के बाद आया था प्रमोद। इससे पहले आर्डिनरी लेबोरेटोरी पुस्तिका से प्रेक्टिकल पुस्तिका में स्क्रू थ्रेड बनाने की पद्धति को सीख लिया था उसने। फ़र्स्ट ऑफ आल वी टेक ए पीस ऑफ आयरन...के आप्त वाक्य को याद करते-करते वह स्मृतियों में खो गया। उनके पंडा सर ने वर्कशॉप में लेथ मशीन चलाने से कहा था, “ लेथ मशीन इज द मास्टर ऑफ आल मशीन। बच्चों, इस लेथ मशीन पर जॉब तैयारी करने का अर्थ कविता लिखने, चित्र खींचने, मूर्ति बनाने या अध्यव्यवसायी शिल्पी के सर्जन की सृष्टि करने से कम नहीं है। किसी भी शिल्प में आजादी नहीं है, बल्कि उनमें है खासकर माप-तौल या एक ढर्रे में बंधी-बंधाई पद्धति में निपुणता का प्रदर्शन।
आज इस पल अपने आधे घंटे की हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी वह स्क्रू थ्रेड को तैयार नहीं कर पाया। दो बार गलत गियर लेवल चलाने से एक बार चक ढीला होने पर भी जो स्क्रू थ्रेड तैयार किया था, वह नट के लिए ढीला हो गया। जबकि आज जब वह पहली बार वर्कशॉप आया था, किसी भी तरह सिर ऊंचा करके और जब उसे मालूम चला कि उसको हेल्पर खोजने में दो-तीन दिन लग जाएंगे तो फिर भी वह नर्वस नहीं हुआ था।
            हाँ, मशीन के पास खडे होते समय थोड़ा डर अवश्य लगा था, थोड़ा नर्वस भी हुआ था। वह क्या अपने सीने पर हाथ रखकर कह सकता है कि मशीन छूने से पूर्व उसके हाथ नहीं कांपे थे? मगर फिर भी भीतर से टूटा नहीं था। जब तक वन बाई ट्वेल्थ थ्रेड का पिनियन नहीं खोज पाया था, तब तक नरहरी के अहंकार की उपेक्षा कर उसके सामने सीना फुलाकर पिनियन खोजने के लिए कहा था। अब उसे समझ में आया था,अंगुलियों की जोड़ में पिघलते समय की तरह वह हारता जा रहा था, खोता जा रहा था अपनी आत्म-छबि। इतनी मेहनत करने के बाद भी इतनी चूक! कुशलता से भिड़ने के बाद भी, इतने स्केल पर नाप-जोख की निपुणता के बाद भी उसने एक पतला स्क्रू थ्रेड तैयार किया है, कैसे अपना चेहरा दिखा पाएगा अब इंजीनियर को, नरहरी नायक को और वर्कशॉप के सभी लोगों को।
उसे लगने लगा था कि उसके ट्रेनिंग पीरियड का ग्लैमर पीतल की घिसी हुई नेम प्लेट की तरह मैला और अस्पष्ट होता जा रहा था। फिर क्या पछतावा करते हुए बैठा रहेगा प्रमोद इस कांड पर, जिस आत्म-विश्वास के बल पर एक खतरनाक चैलेंज को वह अपने सीने में दबे ग्रेनेड की तरह कितने घंटे रख पाया, क्या वह आखिर में फट नहीं जाएगा? स्क्रू थ्रेड नहीं बनाने का अर्थ सबसे बड़ी पराजय होगी। पराजय केवल नरहरी नायक के पास ही नहीं है, उसके पास भी है। मगर वह ये सारी बातें सोच क्यों रहा है? आखिर क्षण में क्या उसने अपना आत्मविश्वास खो दिया? उसे क्या पता था कि यह लेथ मशीन उसके साथ बेईमानी करेगी? असंभव। फिर भी किसी की तो गलती है ............
युद्ध क्षेत्र की इस समाप्त होने वाली संध्या के समय जितने बाज ड़राकर चले गए थे, पंख झपटकर फिर लौट आएंगे। वे सब श्मशान के प्रहरी है, लौट आएंगे एक के बाद एक आँखों में मानो हिंसा भरी हुई हो। निरखते रहेंगे मुंडों के ढेर को, उनकी लोभी लालची पवन भी पूरी तरह से विषाक्त। उसके बाद जो रात होगी और उस रात के पीछे सूर्योदय, वह अपने साथ ले आएगा बंधन का संदेश। प्रमोद के हाथों में सांकल, श्मशान की तरह युद्ध भूमि फाँदते वह बध जाएगा झांऊवन, तोरण, बड़ डांड, सिंहद्वार पार कर किसी राजमहल में, जिसके नरम गलीचे में बिछे लंबे हॉल को पार करने से अंत में सिंहासन आएगा और उस सिंहासन पर बैठा होगा राजा नरहरी, चमकता मुकुट सिर पर, पास में झूलते चंवर, सुंदर छबि वाले परिषदगण, पास में नायलॉन पर्दे के उस तरफ सुंदरियाँ अपनी गोद में सोती हुई आलसी वीणा को स्पर्श करने का प्रयास करती हुई। प्रमोद का सीना भर उठा, चुपचाप फुसफुसाता रहा था, संगीत का कोलाहल,उसके भीतर चेहरा छुपाया हुआ कैदी वह, हँसेगा नरहरी भयंकर तरीके से। वह राजा हैउसे अट्टहास पसंद आएगा। इस तरह तो उसे पराजय मान लेनी चाहिए ? बहुत थके-मांदे पाँव से चलकर प्रमोद इंजीनियर के दरवाजे के पास जाकर खड़ा हो गया, पर्दा खिसकाते हुए इंजीनियर ने पूछा, “ हेवयू कंप्लीटेड योर जॉब, मिश्रा?”
            दूसरे दिन सुबह प्रमोद बहुत ही जल्दी चला गया वर्कशॉप में। कोई भी नहीं आया था रात की द्यूति में अकेले खड़ा था दरबान केवल। वर्कशॉप की मशीनें, औजार सब प्राणहीन पड़े थे, नहीं तो सोए हुए थे। प्रमोद के शरीर पर और नहीं थी वर्कशॉप के ड्रेस की रौनक या अहंकार। पांवों में आत्म-विश्वास भी नहीं था। उसके सारे अहंकार के दुखों को छुपाकर रख लिया हो जैसे उदासी या संकोच ने। वह चुपचाप लेथ मशीन के पास जाकर बैठ गया। वह एक पराजित सैनिक है। नरहरी के आने पर वह खड़ा होगा, आज से उसे नमस्कार करेगा। नरहरी के निर्देशों को छात्रों की तरह मानेगा। नरहरी की अश्लील गालियों पर भी हंसने का अभिनय करेगा अब से। वह सिर झुकाकर मान लेगा सारी पराजय।उसने पहचान लिया जीवन को।जैसे उसने बिना किसी शर्त के जीवन की सारी मांगों को मान लिया हो।






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