फॉसिल्स के सुख-दुःख

                          फॉसिल्स के सुख-दुःख
मुँह थोड़ा-सा खुला है। दो मक्खियाँ उड़ रही थी मुँह के पास। अनिरुद्ध ने नीचे झुक कर दोनों मक्खियों को उड़ते देते समय देखा, सुमन्त के दांत के पीछे जमे काले दाग को।  सुमन्त की आँखें बंद थी। सारे शरीर पर खून के छींटे पड़े हुए हैं। पेट के पास चाकू घुसने वाली जगह खुली हुई है। घर के भीतर 60 वाट का बल्ब; लेकिन इतना कम उजाला क्यों? कमरे की खिड़की दरवाजे बंद हैं। सत्यसुंदर ने नाक को रूमाल से दबा कर पकड़ा है।बदबू आ रही है? सूंघने की कोशिश की अनिरुद्ध ने;लेकिन किसी प्रकार की बदबू नहीं महसूस कर सका। उसकी नाक ही ऐसी है कि वह हल्की-हल्की बदबू या खुशबू तुरंत महसूस नहीं कर सकता है।
                  घर के बीच में पड़ी हुई है पुरानी कुर्सी। सारे टेबल दीवार की तरफ धकेलकर रखे हुए है। दो कुर्सियाँ थी मात्र।एक में पी.के.बैठे हुए हैं।खद्दर की धोती और कुर्ता,कंधे पर चद्दर,आँखों पर ज्यादा पावर का चश्मा लगा हुआ। पास वाली कुर्सी में पुलिस ऑफिसर,सर की टोपी उतारना भूल गए थे वह। याद आने पर खोलकर टेबल पर रखी।गंजा सिर बाहर निकल आया। अनिरुद्ध ने देखा और सोचने लगा, खुली टोपी वाला पुलिस ऑफिसर मानो कोई अलग मनुष्य हो । व्यक्तित्व भी बदल जाता है,टोपी के साथ। उसी क्षण उसे महसूस हुआ कि पुलिस ऑफिसर पूरी तरह असहाय है मानो उनके पास कोई पावर नहीं है।
                  पुलिस ऑफिसर ने गंजे सिर पर हाथ घुमाया।उसके बाद सहलाने लगे सिर के चिकने अंश को,नाखून से खुरचने के कारण कई सफ़ेद दाग पड़ गए सिर पर,वह क्या सिर पर तेल नहीं लगाते हैं? अन्यमनस्क होकर जाते समय उन्होंने पूछा,खरोंच के दाग को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं?
                  पी.के. चुप रहा,सत्यसुंदर भी। अनिरुद्ध याद करता रहा,खरोंच के दाग का अंग्रेज़ी शब्द क्या हो सकता है? याद नहीं आया,पुलिस ऑफिसर की गोद में रखा हुआ है,यूनियन ऑफिस के एक फाइल के ऊपर खाकी रंग का छपा हुआ एक सरकारी फॉर्म। पुलिस ऑफिसर की ऊंगली में काला लग गया है। अनिरुद्ध उनके पास गया। झुककर देखा पुलिस ऑफिसर के हाथ की लिखावट बहुत खराब है। दोनों तरफ दीवार के पास दो बेंच पड़े हुए है। उसी बेंच में एक पर सत्यसुंदर बैठा हुआ है।  अन्य समय में टेबल कमरे के बीच में रखा रहता है,दोनों तरफ दो चेयर दो बेंच ऐसे ही दीवार के पास रखे होते हैं,जहाँ मजदूर सब आकर बैठते हैं। दीवार के कोने में अलमीरा है ताला लगी है,उसके भीतर सारी फाइलें है। यूनियन की फाइलें एक टाइप मशीन भी है। सुमन्त टाइप करता था,उसको टाइप मालूम था। स्पीड,एक मिनट में चालीस, वह एकाउंट सेक्सन में टाइपिस्ट था। सुमन्त के बाद कौन टाइप करेगा अब? यह सोचकर अनिरुद्ध  पीछे वाली बेंच के पास चला गया एवं वहां बैठ गया,सत्यसुंदर के पास। उसे और सत्य को टाइप नहीं आती है। सुमन्त कल शाम को यूनियन ऑफिस आया था। आज उसे दिन में ड्यूटी जाना था। गया था? चार बजे अनिरुद्ध को खबर मिली कि सुमन्त की डेडबॉडी पड़ी हुई है रेल-लाइन के पास। अनिरुद्ध की फर्स्ट शिफ्ट ड्यूटी थी। चार बजे बाहर आकर,कैंटीन में चाय पीने के समय उसको यह खबर मिली। उसके स्पॉट में पहुँचने से पहले बहुत लोग जमा हो गए थे। सत्यसुंदर एवं पी.के. भी पहले से वहाँ पहुँच गए थे,पुलिस ऑफिसर भी। वहाँ से पुलिस ऑफिसर के आदेश से यूनियन ऑफिस में उठाकर लाए थे सुमन्त की डेडबॉडी को। पेट में चाकू भोंका था किसने ? सुमन्त क्यों रेल लाइन के तरफ गया था ? किसी ने उसे मारकर रेल लाइन के पास में फेंक तो नहीं दिया था ?
            सुमन्त की डेड बॉडी के साथ बहुत लोग आए थे। यूनियन ऑफिस का यह बरामदा, कमरे और रास्ते भर गए थे। पुलिस ऑफिसर के निर्देश में सबको बाहर निकालकर, भीतर से दरवाजा बंद कर दिया गया था। भीतर में थे पी.के.,सत्यसुंदर,पुलिस ऑफिसर और अनिरुद्ध। दो कांस्टेबल ऑफिस के बाहर खड़े लोगों को भगाने के लिए रुक गए थे,बाद में और भीतर नहीं आए थे।
            अनिरुद्ध को पी.के ने पूछासुमन्त के घर खबर कर दी गई है। सुमन्त का गांव पास में है,पाँच-छह मील दूरी होगी यहाँ से। फिर भी वह टाउन में रहता था।हफ्ते में एक बार ऑफ डे देखकर गाँव जाता था। लेकिन उसके गाँव में खबर भेजी गई है या नहीं।उसके कुछ कहने से पहले सत्यसुंदर ने कहा करिमुल्ला को भेजूंगा। आज शाम को ही उन लोगों को खबर मिल जाएगी । पी.के.ने कहा,कल शव-दाह करेंगे। कल सुबह हमारी पार्टी की तरफ से एक शोक-यात्रा निकाली जाएगी सुमन्त की डेडबॉडी लेकर। अनिरुद्ध, तुम और सत्य मिलकर व्यवस्था करो। पुलिस ऑफिसर ने अब टोपी पहन ली। कहने लगे,एप्लिकेशन दे दीजिएगा,परमिशन के लिए। आज रात को या कल सुबह शायद धारा 144 जारी हो जाएगी। ऐसे तो हमारा राइटर गया है,डी.एस.पी और ए.डी.एम के पास। फिर भी,एप्लिकेशन दे दीजिएगा।
                   पी.के. ने अब कहा:एक एप्लिकेशन लिखो। किसे कहेगा लिखने के लिए? अनिरुद्ध ने मुँह उठाकर देखा कि पी.के. आंखों से चश्मा उतारकर पोंछ रहें हैं और पुलिस ऑफिसर सिगरेट पैकेट को बाहर निकाल कर उन्हें ऑफर कर रहा है। दोनों ने सिगरेट सुलगाई। अनिरुद्ध का भी बहुत मन कर रहा था एक सिगरेट पीने के लिए। लेकिन उसके पाकेटमें एक भी सिगरेट नहीं है। सत्य के पाकेटमें है? लेकिन ऐसी परिस्थिति में मांगना ठीक नहीं है।सत्यसुंदर भी नीचे मुँह करके बैठा है। सुमन्त का मुँह खुला पड़ा है।सुमन्त गांव का लड़का होने पर भी खूब टिप-टॉप से रहता था। फैशनेबल,सुमन्त के साथ वह कहाँ-कहाँ नहीं जाता था,सिनेमा जाता था,शोभायात्रा में भाग लेता था,मीटिंग के लिए भाग-दौड़ करता था;तनख्वाह के दिन चंदा-संग्रह करता था और एक सिगरेट को भी दोनों ने मिल-मिलकर पिया है, बारी-बारी से।कल शाम को भी उसने इस ऑफिस में सुमन्त के साथ बैठकर बातचीत की थी।उस समय किसने सोचा था कि आज शाम को सुमन्त का निर्जीव शरीर इस फर्श पर सोया हुआ मिलेगा ?
                  अनिरुद्ध आकर बेंच के ऊपर बैठ गया सत्यसुंदर के पास। पी.के. और पुलिस ऑफिसर मुँह से धुंआ निकाल रहे हैं। धूम्रपान की तड़प से उसकी छाती अथय हो उठी। पास में सिगरेट नहीं। सत्यसुंदर के पास है क्या? ऐसे समय में मांगना उचित नहीं होगा। फिर भी उसे वह प्यास बेचैन कर रही है,क्या किया जा सकता है? पुलिस ऑफिसर दाग देख रहे थेडेड बॉडी के पीठ पर। पी.के. ने कहा,कुछ बर्फ की व्यवस्था कर दीजिए सत्य। हो सकता है आज रात को डेड बॉडी रखनी पड़े। सुमन्त के घर से लोग हो सकता है रात को नौ-दस बजे तक पहुंचेंगे। मैं उनको समझाने की कोशिश करूंगा।  हाँ,उनके गांव से जो भी आएंगे,उन लोगों के रहने का बंदोबस्त कर देना। सत्यसुंदर ने सिर हिलाकर हाँ किया,किसी बंधुआ लड़के की तरह। पुलिस ऑफिसर खाकी कागज़ पर लिखते जा रहे थे।उन लोगों का  सिगरेट पीना खत्म हो गया है। लेकिन पूरा घर सिगरेट के धुएं और गंध में भर गया है।घर के भीतर साठ वाट के बल्ब का उजाला और भी मद्धिम हो गया है।
                    पी.के. ने पाकेट से पचास रुपए का एक नोट निकालकर सत्य की तरफ बढ़ाते हुए कहा,बर्फ के दो ब्लॉक लाना।दो में हो जाएगा न? सुमन्त तो इतना लंबा नहीं है।इसके अलावा,ठंड के दिन है।तुम दो ब्लॉक लेकर आओ।चौदह रुपए लगेंगे एक ब्लॉक के।रिक्शा भाड़ा मिलाकर सोलह रुपए होंगे। बाकी रुपए अपने पास रखना।सुमन्त के गांव से जो लोग आएंगे,जलाने की लकड़ी खरीदने के लिए उनके हाथ में दे देना।कल मुझे खर्च का हिसाब देना,समझे?सत्यसुंदर ने सिर हिलाकर हाँ किया एक अच्छे बच्चे की तरह। नोट को लेकर पाकेट में रखा। पुलिस ऑफिसर ने पूछाआप किस पर ससपेक्ट कर रहें हैं सुमन्त की मृत्यु के लिए।
                  पी.के. के कुछ कहने से पहले अनिरुद्ध उठकर खड़ा हो गया। सत्यसुंदर के कंधे को छूकर कहा,मैं थोड़ा आता हूँ,कहकर दरवाजा की छिटकनी खोलकर बाहर निकल आया। बाहर आकर दरवाजा बंद कर दिया। नहीं,सत्यसुंदर ने भीतर से छिटकनी नहीं लगाई। लगाने की आवाज़ भी नहीं सुनाई दी। अंधेरा छा गया है चारों तरफ। स्ट्रीट लाइट जलने लगी है। रास्ता सुनसान हो गया। दोनों कांस्टेबल रास्ते के उस पार घर के बरामदे में बैठकर बीडी फूँक रहे थे । उन्होने अनिरुद्ध की तरफ देखकर भी ध्यान नहीं दिया।अनिरुद्ध रास्ते में चलते समय आसमान की ओर देखने लगा आसमान में कितने सितारे होंगे? कितने? उसकी छाती के भीतर की धूम्रपान की प्यास फिर से बढ़ गई। उसे सबसे पहले एक सिगरेट की जरूरत है। अच्छा, एक कप चाय मिलने से भी अच्छा रहता।
                  अनिरुद्ध पहुँच गया सुप्रभा के घर के सामने। पूरी कॉलोनी स्तब्ध थी। आज शाम के छ बजे ही सब लोग घर के भीतर घुस गए हैं। आश्चर्य वत खड़ा हो गया वह कुछ पल सुप्रभा के घर के गेट के आगे। चारों तरफ देखने लगा। दूर से एक कुत्ता उसे देखकर भोंकने लगा तो वह गेट खोलकर घर के भीतर घुस गया। बरामदे में लाइट नहीं जल रही थी। घर के खिड़की दरवाजे सब बंद थे। अनिरुद्ध दरवाजे के पास खड़ा होकर सोचने लगा इस समय सुप्रभा के घर जाना उचित होगा या नहीं। उसे एक कप चाय चाहिए शाम के छह बजे। एक कप चाय पीने के लिए किसी सज्जन आदमी के घर जाना ठीक नहीं होता है और सुप्रभा के साथ उसका संबंध दूसरी तरह का है।
                  उसने सोचतेसोचते कॉलिंग बेल बजा दी। कॉलिंग बेल बजने के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला। फिर कॉलिंग बेल बजाई उसने। अब भीतर से पैरों की आवाज देने लगी;लेकिन आधे रास्ते में ही आवाज थम गई, दरवाजा नहीं खोला किसी ने। अनिरुद्ध अधीर होकर दरवाजा खटखटाने लगा। अब भीतर से सुनाई देने लगी सुंदरी की आवाज।  सुंदरीसुप्रभा के घर की नौकरानी थीपूछने लगी, कौन है?
          उसने गला खंगार कर उत्तर दिया- मैं अनिरुद्ध।
         अब भी दरवाजा नहीं खुला। लेकिन खिड़की खुल गई। उसके बाद बरामदे की लाइट जल गई एवं खिड़की के उस पार से सुंदरी का क्लोज अप दिखाई देने लगा। सुंदरी ने अनिरुद्ध को देखकर और आश्वस्त होकर दरवाजा खोल दिया। अनिरुद्ध भीतर घुस कर पूछने लगा कि घर में कोई नहीं है?
          सुंदरी ने स्विच ऑफ किया। बरामदे का लाइट और खिड़की बंद करते हुए कहा; है,बेडरूम में। अनिरुद्ध के जूते खोलकर भीतर जाते समय बेडरूम से आवाज़ आई,सुप्रभा की मम्मी की, उसने पूछा: सुंदरी कौन आया है?
      सुंदरी ने खिड़की बंद कर दी थी। कहने लगी,अनिरुद्ध बाबू।
      भीतर से सुप्रभा की मम्मी की आवाज़ सुनाई दी: अनिरुद्ध! आओ,आओ,भीतर आओ।
      अब परमिशन मिल गई है।अनिरुद्ध का जूते खोलना भी पूरा हो गया है।वह बेडरूम की दरवाजा ढकेल कर भीतर गया।बेडरूम के भीतर मुंबई पैटर्न वाले डबल बेड पर एक गद्दा बिछा हुआ था। उस पर रज़ाई के भीतर सुप्रभा और उसकी मम्मी सोते-सोते किताब पढ़ रहीं थी। दोनों डिटेक्टिव उपन्यास पढ़ने की खूब शौकीन है। सुप्रभा की मम्मी के सिर के पास रखा हुआ एक रिकॉर्ड प्लेयर रैक के ऊपर- थोड़ी देर पहले शायद बज रहा था। अब पिन को उठाकर रख दिया गया है,लेकिन डिस्क के साथ रिकॉर्ड अभी भी घूम रहा था। सुप्रभा सोतेसोते उधर देखकर मुस्कराई। उसके होठों पर हंसी। आँखों में हंसी। थोडी-सी जगह देकर कहने लगी, बैठो।
      अनिरुद्ध बैठ गया खाट पर सुप्रभा के पास। सुप्रभा और उसकी मम्मी दोनों रजाई ओढ़ी हुई थीं। सुप्रभा की मम्मी की उम्र पैंतालीस के आस-पास पहुँचते-पहुँचते मांसल और वह थुलथुल दिखने लगी थी, लेकिन सुप्रभा ऐसी नहीं है। उसकी दोनों आँखें आषाढ़ महीने के शाम के उत्तरपश्चिमी कोने में जमे मेघों की तरह काली और उसके भीतर से सफ़ेद अंश बिजली की तरह चमक रहा था। इंप्रेसिव। सिर के बाल शैंपू से धुले हुए,भूरे बाल। शरीर का रंग गोरा। नाक इतनी चिकनी कि मक्खी भी बैठने पर फिसल जाएगी। उसके दोनों स्तन कमीज को धकेलकर बाहर निकलने के लिए इतने बेचैन थे कि, पीछे से बैकलेस खोलते ही जैसे कुछ दूर निकल पड़ेंगे। बच्ची की तरह थी। सब मिलाकर सुप्रभा, कास्मेटिक साड़ी के  दुकान की शो-केस की तरुणी जैसी सुंदर,प्यारी और आकर्षक सीनियर कैंब्रिज में तीन साल पढ़ाई करने के बाद भी अपनी मम्मी की नजरों में वह  बेबी है।
            अनिरुद्ध ने पूछा: आंटी, इतनी जल्दी बिस्तर में चले गए?” सुप्रभा की मम्मी की आँखें किताब पढ़ने में व्यस्त थी,वह कहने लगी: क्या करेंगे और? आजकल तो शाम पाँच बजे ही अंधेरा हो जाता है। तुम्हारे अंकल भी नहीं हैमुंबई गए हुए हैं। इसके अलावा,कहीं खून हुआ है टाउन में सुनने में आया है। क्या हुआ है?” अनिरुद्ध ने बात टाल दी: ऐसा कुछ नहीं है। यूनियन की लड़ाई।
            सुप्रभा की मम्मी कहने लगी: तुम भी तो यूनियन में हो। क्या फायदा मिलता है इससे? बेकार में फालतू लोगों के साथ मिलकर अपनी इज्जत खराब करना है। तुम तो उस मारपीट में शामिल नहीं हो तो?” क्या कहता अनिरुद्ध? सुमन्त के शव को अपने हाथों से कुछ समय पहले इधर-उधर हिला रहा था। ये सारी बातें यहाँ नहीं कही जा सकती। उसके हंसने की सारी कोशिश व्यर्थ ही रहीं। एक सूखी हंसी उसके चेहरे पर छिटक गई। कहने लगा: नहीं,नहीं। मैं क्यों उस मारपीट में शामिल रहूँगा?”
                  वह और कुछ कहता,लेकिन बीच में ही सुप्रभा ने बात काट दी, “मम्मी  रिकॉर्ड प्लेयर को चालू कर दो। उसकी मम्मी ने चालू कर दियाथोड़ा-सा उठी,फिर सो गई। सुप्रभा कहने लगी: जानते हो,हमारे चार नए एलपी रिकॉर्ड आए हैं। ओडिया फिल्मों के सारे हिट गाने के।
                  अनिरुद्ध मंद-मंद मुस्कराया। सुप्रभा की मम्मी ने पूछा- तुम ए.एम.आई.ई की परीक्षा दे रहे थे न? क्या हुआ?” अनेक दिनों से ए.एम.आई.ई की बात करके मूर्ख बना रहा था सुप्रभा की मम्मी को।: लेकिन अभी तक उसने एडमिशन नहीं लिया है। जीवन में ऐसे ही कई झूठ बोलने जरूरी होते हैं। नहीं,तो जीवन जीने की आवश्यकता है,ऐसा नहीं लगता है। वह कहने लगा– “पढ़ाई चल रही है।
                  सुप्रभा की मम्मी ने कहा: बी एम्बिशियस। जीवन में कुछ बनो अनिरुद्ध। यह यूनियन-व्युनियन से कुछ नहीं मिलेगा। कहकर फिर थ्रीलर उपन्यास पढ़ने लगी। अनिरुद्ध ने दोनों की तरफ देखा। दोनों सुगंधित महिलाएं। दोनों के होठों पर लिपस्टिक नहीं लगीं हुई थी। कहीं बाहर जाने का मन होता तो माँ-बेटी दोनों लिपस्टिक लगा लेती हैं। सुप्रभा की मम्मी को लिपस्टिक लगा देखने से लगता है किसी ने ब्लैक एंड व्हाइट फोटो वाली महिला के होठों पर लाल रंग पोत दिया हो किसी मूर्ख फोटोग्राफर की वल्गर कृति की तरह, मगर लिपस्टिक लगी   सुप्रभा उसे सेक्सी-सेक्सी लगने लगती है।
                   मौका मिलने पर,उसने सुप्रभा को कई बार किस किया है और सीने से चिपकाया है।  सुप्रभा ने कभी कुछ आपति नहीं की,वरन प्रश्रय ही दिया है। लेकिन प्रेम-फ्रेम उनके भीतर कुछ है?कभी उस तरह की बातचीत उन्होंने नहीं की। सुप्रभा उससे शादी करने के लिए अथवा घर छोड़कर भाग जाने के लिए बेचैन नहीं हुई थी,जैसे अक्सर मध्यवित्त परिवार की लड़कियाँ होती थी। अपनी मम्मी की निगाहों में वह अभी भी बेबी है। तीन साल हो गए सीनियर कैंब्रिज स्कूल में पढ़ रही है,फिर भी वह बेबी है। रिकॉर्ड एल.पी कम वॉल्यूम बज रहा है। सुप्रभा की मम्मी के सिरहाने रखी हुई है कहानी की किताब। सुप्रभा भी पेट के बल पर लेटी नंगी लड़की के तस्वीर वाली पेरिमेशनके पृष्ठों के भीतरखो गई। उसकी मम्मी थ्रीलर के भीतर। अनिरुद्ध बैठा है चुपचाप,सुप्रभा की खाट पर। वह यहाँ क्यों आया था? ठीक उस समय याद नहीं कर पाया। अनिरुद्ध को जम्हाई आने लगी थीं,मगर उसने संभाल लिया। सुप्रभा चुपचाप,उसकी मम्मी भी। धीमी आवाज़ वाला पॉप म्यूजिक चल रहा था एल.पी. से। ठीक उसी समय लाइट चली गई। चारों तरफ अंधेरा। सुप्रभा उसकी मम्मी चुप। अनिरुद्ध ने अपना हाथ घुसा दिया रजाई के भीतर। रजाई के भीतर सुप्रभा का शरीर। अनिरुद्ध का हाथ साँप की तरह रेंगने लगा सुप्रभा के शरीर के पर। आज उसने फ्रॉक पहना है या सलवार? अनिरुद्ध समझ नहीं पाया। हाथ बढ़ता जा रहा था आगे-सुप्रभा ने अपने हाथ से पकड़ लिया उस साँप को। अनिरुद्ध सहलाने लगा सुप्रभा की हथेलियों को। उसके बाद शरीर के ऊपर इधर-उधर घूमना शुरू कर दिया उस हाथ ने। सुप्रभा ने कोई रुकावट नहीं की। चुप-चाप सोती रही वह।
                  सुप्रभा की मम्मी ने ज़रा ज़ोर से कहा, “सुंदरी मोमबत्ती जलाकर लाओ यहाँ।उनके कंठ की आवाज़ सुनते ही अनिरुद्ध का हाथ बाहर निकलने लगा था। सुप्रभा ने फिर से पकड़ लिया और सटाकर रखा अपने शरीर से। अनिरुद्ध को लगा, अंधेरे में सब बदल जाते हैं।
                  ठीक उस समय उसे याद आने लगा सुमन्त का नंगा शरीर, कुछ देर पहले ही शव को हिलाने डुलाने वाले इन हाथों ने सुप्रभा की कोमल छाती की खोजना शुरू कर दिया था। याद आते ही एक ठंडी अनुभूति उसके सारे शरीर में दौड़ गई। मानो वह सुमन्त के मरे हुए शरीर पर हाथ घुमा रहा हो। सुप्रभा चुपचाप,उसकी मम्मी भी। रजाई के नीचे नंग धड़ंग सुमन्त है। मुंह खुला हुआ है। नीचे झुककर देखने से दिखाई देगा दांत के पीछे की तरफ जमा काला दाग। अनिरुद्ध का हाथ रुक गया। अंधेरे घर में मोमबत्ती की रोशनी तैरने लगी सुंदरी की हाथों में। थोड़ा-थोड़ा उजाला। सुंदरी ने लाकर रैक के ऊपर रख दी मोमबती कोसुप्रभा की मम्मी के सिराहने। सुप्रभा की मम्मी से फिर मोमबत्ती की लाइट में डूब गई अपने थ्रीलर उपन्यास के भीतर। अनिरुद्ध का हाथ सुमन्त के मरे हुए शरीर के ऊपर से हट गया।
                  सुप्रभा फुसफुसाकर कहने लगी डरपोकऔर हँसकर फिर से पेरिमेशन के भीतर आँखें दौड़ने लगी।
                  अनिरुद्ध खड़ा होकर कहने लगा मैं जा रहा हूँसुप्रभा ने कुछ नहीं कहा। न उसकी मम्मी ने भी। दरवाजा के पास आते समय सुप्रभा की मम्मी बोली, “गुड नाइट , अनिरुद्ध। बाय अनि!अनिरुद्ध ने उत्तर दिया, “सेम टू यू आंटी। बाय,सी यू सुप्रभा।
                  यह कहते हुए वह बाहर निकल गया बेड रूम से। ड्राइंगरूम में आकर जूता पहन कर फीता बांधकर बाहर जाने के लिए खड़े होकर वह ज़ोर से बोला– “सुंदरी,मैं जा रहा हूँ, दरवाजा बंद कर दो। कहकर वह निकाल गया। बाहर आकर रास्ते के पर खड़ा हो गया। पूरी कॉलानी निस्तब्ध। हर घर के दरवाजे बंद थे। बरामदे में लाइट भी नहीं जल रही थी। खूब सुंदर चाँद दिखाई दे रहा था। आज क्या तिथि होगी? ठंड लगने लगी थी।
                  वह क्यों आया था सुप्रभा के घर? अचानक उसे याद आ गई चाय पीने की बात। वह कैसे भूल गया था देखो, सुप्रभा के घर में चाय पीने की बात।
                  बिना इधर-उधर देखे वह आगे चलता गया,वह देशी दारू के गिलासों के भीतर की बस्ती में चला गया। पास वाली दारू की भट्टी पर कोई साइन-बोर्ड नहीं है,आपातात बस्ति से ही उसका काम चल जाता है। अन्यमनस्क होने के कारण उससे अनदेखा रह गया,एक कच्चे घर के बरामदे में उल्टी करते पुराने आसबाबों की तरह एक बूढ़ा। उसने एक मेंढक को अनजाने में कुचल दिया और अश्लील भाषा में गाली देती बूढ़ी के चेहरे को भी वह देख नहीं सका। बिजली का खंभा तो था बस्ती में; लेकिन लाइट नहीं जलने के कारण उसे खोज पाना मुश्किल था। एक बिजली के खंभे को लगभग दो सौ किलोमीटर पीछे छोड़कर चला आया था अनिरुद्ध। मगर चाँदनी रात में रास्ते पर चलने में उसे असुविधा नहीं हुई।
                  अनिरुद्ध खड़ा हो गया एक घर के आगे और कुछ पल चुप-चाप खड़ा रहा लगा।  मिट्टी से बनी दीवारें थी,नीची खपरैल छत और टीन का दरवाजा। घर के भीतर से आवाज़ भी नहीं आ रही है। आस-पास में कोई ज़ोर-ज़ोर से ट्रांजिस्टर बजा रहा है,पूरे वॉल्यूम में। कान झन-झना उठे हैं उस आवाज़ से। अनिरुद्ध ने टीन के दरवाजे को एक बार खटखटाया ; लेकिन भीतर से आवाज़ नहीं आई। इस बार उसने ज़ोर से पुकारा: रामुलु, रामुलु।
                  घर के भीतर से नहीं,पड़ोसी के घर से हाफ पैंट पहने हुए चौदहपंद्रह साल का लड़का बाहर आया और पूछने लगा, “कौन है वह? कौन?” अनिरुद्ध के उत्तर देने से पूर्व ही पास में आकर उसे देखकर अपना संदेह दूर कर दिया और वह हंस कर बोला; “चाचा जिंदाबाद। बच्चे का गलत समय जिंदाबाद सुनकर हंस पड़ा था अनिरुद्ध और पूछने लगा,”रामुलु कहाँ गया?” इस बार लड़के ने उत्तर देने की बजाय, उसे वहीं खड़ा करके दौड़कर चला गया अंधेरे के भीतर। वह खड़े-खड़े होकर रेडियो की आवाज़ सुनने लगा,एक औरत के गाली भरे वाक्य और अपने हाथ के ऊपर निर्विघ्न होकर खून पीते मच्छर की भनभनाहट।  मच्छर के उड़ जाने के बाद उसने अपने हाथ को खुजलाया।
                  अंधेरे के भीतर से उस लड़के ने साथ में लाया एक आदमी को वह रामुलु था। अनिरुद्ध को देखकर हँसते हुए हाथ जोड़कर कहने लगा, “चाचा सलाम।
                  उसी तरह हाथ जोड़कर अभिनंदन का उत्तर दिया अनिरुद्ध ने और कहने लगा, “रामुलु,कब प्रोसेशन होगा सुबह। सुमन्त के डेडबॉडी को रखा गया है,तेरी जिम्मेदारी में। पार्टी के दूसरे लोगों भी खबर दे देना। हाँ, तुम कम से कम दो सौ लोगों को साथ ले आना।रामुलु ने सिर हिलाकर हाँ किया और पूछने लगा, “दादा! कल मैंने रतन बाबू के साथ हमारे सुमन्त चाचा को बातचीत करते देखा था। दुश्मन पार्टी के साथ सुमन्त चाचा का मेल-जोल क्यों? सोच रहा था। लेकिन कहने का साहस नहीं कर पाया था। जैसे भी हो आप लोग बड़े हैं। हम तो नौकर है,आपको क्या रास्ता दिखाएंगे? दादा, उस रतन बाबू ने तो ......
                  अनिरुद्ध ने रामुलु के कंधे पर हाथ रखकर कहा: कल मीटिंग में सब बातें होंगी। तुम दो सौ लोगों को लेकर आजाओ। हाँ,कुछ रुपयों की व्यवस्था कर सकोगे?”
                  रुपयों की बात सुनकर फीका पड़ गया रामुलु का चेहरा। कहने लगा: महीना खत्म। कहाँ से जुगाड़ करूंगा?” धमकी भरे स्वर में अनिरुद्ध ने कहा; “सुमन्त ने पार्टी के लिए प्राण दे दिए,तुम लोगों के लिए प्राण दिए,और तुम लोग उसके लिए कुछ रुपयों की व्यवस्था नहीं कर पाओगे? अंत्येष्टि कर्म।
                  अनिरुद्ध के कुछ और कहने से पहले रामुलु ने उत्तर दिया, “अच्छा कोशिश करता हूँ।यह कहकर वह अंधेरे में अदृश्य हो गया। उसे अकेले छोड़कर कुछ पल के बाद उसने लौट कर अनिरुद्ध के हाथों में एक मुट्ठी कागज के नोट थमा दिए, भट्टी वाले ने इतने ही दिए है और संभव नहीं होगा। यह महीने का शेष है। अनिरुद्ध ने रुपये पाकेट में डालकर पूछा : कितने हैं?
                  इस प्रश्न के उत्तर में रामुलु ने जब कहा कि अस्सी रुपए हैं, तो वह चौंक गया। उसने पी.के. को रुपयों की व्यवस्था करने के लिए नहीं कहा था। यूनियन के फ़ंड में जितने रुपए हैं,उसका सामान्य अंश भी सुमन्त के अंतिम संस्कार के लिए काफी है। अचानक इतने सारे रुपए मिलने से वह खुश हो गया और अपने पाकेट से दस रुपए का एक नोट बढ़ा दिया रामुलु की तरफ। रामुलु पहले आश्चर्य चकित हो गया,बाद में उसे लेते हुए शरमा कर खुश हो गया। अनिरुद्ध ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा: कामरेड!
                  अनिरुद्ध का शब्द कामरेड इतना अच्छा लगा रामुलु को कि वह खुशी से कह उठा,कामरेड। कामरेड अनिरुद्ध ने जाने से पहले फिर एक बार याद दिला दिया कि कल सुबह जैसे भी हो रामुलु दो सौ लोगों को एकत्रित कर यूनियन ऑफिस में लेकर आ जाएगा। पाकेट में रुपए होने से,अनिरुद्ध बाहर जाने के लिए बेचैन हो रहा हैं। इतने सारे पैसे कैसे खर्च करेगा समझ नहीं पाता वह। आज तक तो एक भी रुपया जमा नहीं कर पाया है वह। उसके पास एक भी पैसा नहीं था शाम तक। अब पाकेट गरम है। अस्सी रुपये। क्या करेगा’ ‘क्या करेगासोचते-सोचते जाते समय नलिनाक्ष के साथ भेंट हो गई। नलिनाक्ष उसका बॉटल-फ्रेंड था और बुद्धिजीवी भी इसलिए दाढ़ी नहीं काटता,कुर्ता पायजामा पहनता है, +0.75 पावर के सोने की फ्रेम वाले चश्मे पहनता है। यूनियन-फूनियन में बुद्धि नहीं लगाता है।
                  उसे देखकर अनिरुद्ध एक होटल के भीतर उसे बुलाकर ले गया और कहने लगा कि वह आज उसे विदेशी शराब पिलाएंगे। जिस होटल में बुलाकर ले गया था वह था सरदार का ढाबा शेर-ए-पंजाबहोटल। साइन-बोर्ड के नीचे एक कुत्ता सोया हुआ थाअनिरुद्ध की लात खा कर चला गया मुमूर्षु चीत्कार करते हुए। होटल बहुत बड़ा था। भीतर जाते-जाते काउंटर पर पगड़ी पहने घनी दाढ़ी वाले पंजाबी के चेहरे से एक दो इंच मुस्कान खिल उठी। आगे एक सीट पर स्लिपों का गुच्छा रखा हुआ था,एक कॉलिंगबेल का स्विच ड्रावर से सटा हुआ और एक प्लास्टिक ट्रे में सौंफ़ के दाने। उसके पीछे में रफ्रिजरेटर और ऊपर गुरु नानक की तस्वीर जिस पर शाम में लगी अगरबती,खत्म हो गई थीबची-खुची खड़िका में राख बनकर झूल रही थी! भीतर टेबल रखे हुए थे और हर एक टेबल की दोनों पार्श्व में कुल चार चेयरइस तरह दस पंद्रह जोड़ों और एक पार्श्व में लकड़ी से घेरा हुआ केबिन,जिसके दरवाजे पर पर्दा झूल रहा है। हर एक टेबल पर प्लास्टिक जग और जूढ़े काँच के गिलास एक-दो टेबल पर रखे हुए थे। दो-तीन ग्राहक बैठकर खा रहे थे और उनसे थोड़ी दूरी पर एक किचन-रूम,जिसका मुँह होटल की तरफ खुला हुआ था। कोयला के बड़े चूल्हे पर तंदूरी रोटी सेक रहा था एक आदमी और एक मीट फ्राय कर रहा था पैन में और दो-तीन आदमी आर्डर लेने करने के लिए इधर-उधर दौड़ रहे हैं। अनिरुद्ध को देखकर सरदार जी की जंगली दाढ़ी से एक हंसी निकलकर अनिरुद्ध के होंठों पर चिपक गई। सरदारजी ने दोनों हाथों से कपाल को स्पर्श किया तो अनिरुद्ध ने सिर थोड़ा-सा हिला दिया था। नलिनाक्ष को लेकर वह होटल के भीतर की तरफ चला गया और जहाँ पानी की टैप और बेसिन आदि लगे हुए थे,उससे आगे जाने पर एक दरवाजा दिखाई दिया,जिसके भीतर दोनों घुस गए। भीतर के खुले आँगन के एक तरफ एक छोटा घर था जिसका दरवाजा बंद था,उसको धकेल कर वे भीतर चले गए। भीतर में एक टेबल और चार चेयर पड़ी थी। अनिरुद्ध ने दरवाजा बंद कर दिया तो नलिनाक्ष ने पूछा: क्या बात है?”
                  अनिरुद्ध अचानक किए गए प्रश्न का तात्पर्य समझ नहीं पाया था और उसके समझने तक होटल का बैरा आया और मुस्कराकर पूछने लगा। पाकेटसे चालीस रुपये निकाल कर अनिरुद्ध ने टेबल के ऊपर रख दिए और पूछने लगा, “नलिनाक्ष क्या पियोगे? रम?” नलिनाक्ष की दोनों आँखें चमक उठी,“नहीं दोस्त, लेट अस सेलिब्रेट। रम नहीं व्हिस्की। व्हिस्की पीने पर अनिरुद्ध को बहुत तेज नशा आ जाता और उसके दूसरे दिन सुबह शरीर थका मांदा लगने लगता था। फिर भी नलिनाक्ष के लेट अस सेलिब्रेटवाक्य से वह ऐसे दब गया कि और प्रतिवाद नहीं कर सका। होटल बॉय को आर्डर दिया: एक बोतल व्हिस्की और दो सोडा लाओगे। हाँ,चार तंदूरी चिकन फ्राय दो प्लेट में।नलिनाक्ष ने भी जोड़ दिया: विल्स फिल्टर एक पैकेटअनिरुद्ध ने कहा: एक माचिस का पैकेट भी
                  लड़के की हथेली में हिलता हुआ नोट देखते-देखते अदृश्य हो गया दरवाजे के उस पार से और वह दरवाजा बंद कर आगे चला गया।
                  अचानक अनिरुद्ध को याद आ गई लेट अस सेलिब्रेटवाक्य वाली नलिनाक्ष की बात। किसके लिए सेलिब्रेट? व्हाट फॉर? सुमन्त की मृत्यु के लिए?सोचकर और काँप उठा वह। आज अगर सुमन्त की जगह, मेरी रेल लाइन के पास पेट में चाकू घोंपने से मौत होती तो सुमन्त भी इस दारू पीने की लिए प्रतीक्षा में बैठा होता? यह सोचते-सोचते कि ऊपर सिर निकालते समय नलिनाक्ष ने पूछा; “तुम्हारा तबीयत खराब तो नहीं है अनि?”
                  अनिरुद्ध के कुछ कहने से पहले ही उस लड़के ने दूसरे लड़के के साथ मिलकर रोटी और चिकन की एक प्लेट के साथ व्हिस्की सोडा बोतल चार खाली गिलास एक पानी का जग विल्स फिल्टर का एक पैकेट और माचिस की डिबिया टेबल के ऊपर रख दी। पहले वाले लड़के ने कुछ खुले पैसे टेबल के ऊपर रख कर कहा: सारे रुपए शराब खरीदने में खर्च हो गए। तंदूरी और चिकन का अलग बिल होगा।  
                  अनिरुद्ध विरक्त भाव से मुँह बिगाड़ने लगा: जा, बे!लड़के को और कुछ न कहकर उसके जाने के बाद उसने बोतल का कॉर्क खोलकर दोनों गिलासों में सारी व्हिस्की उडेंल दी। एक में अपने लिए सोडा मिला लिया। दूसरे में सोडा मिलाते समय नलिनाक्ष ने मना कर दिया यह कहते हुए कि मेरे लिए नीट ही ठीक है। दोनों ने व्हिस्की के गिलास को पकड़ कर चीयर्स किया। थ्री चीयर्स फॉर कहते अनिरुद्ध रुक गया। थ्री चीयर्स फॉर व्हाट? सुमन्त की मृत्यु पर। उसके नजरों के सामने तैरने लगी,यूनियन ऑफिस की फर्श पर औंधे मुंह पड़े सुमन्त की डेडबॉडी,जब वह जिंदा था हर दिन शाम सिगरेट के टुकड़ों को एक साथ पीते थे वे,एक साथ सिनेमा देखते थे। इस होटल की इस टेबल पर बैठकर भी कई बार सुमन्त ने चीयर्स किया था गिलास उठाकर। लेकिन अब बर्फ की सिल्ली पर निर्जीव होकर सो रहा है अपने सारे दुःख और शोक को छोड़कर। वह इस टेबल के ऊपर कभी और नहीं बैठेगा। सिगरेट की जूठन के लिए और हाथ नहीं बढ़ाएगा, सभा-समिति में माइक के सामने नहीं चिल्लाएगा: हेलो, माइक टेस्टिंग... जीरो, वन, टू, थ्री, फोर-सुमन्त के लिए सब अर्थहीन हो गया अब।
                  नलिनाक्ष रोटी तोड़कर खा रहा है .... कब से एक पेग खत्म कर के दूसरा पेग लेना शुरू कर दिया था। वह सोडा नहीं मिलाता,नीट पीता है,फिर एक सिगरेट सुलगाता है। पीने के समय सिगरेट पीना उसकी आदत है। अन्यमनस्क होकर अनिरुद्ध ने गिलास उठाकर एक घूंट पी लिया। मुँह कड़वा हो गया उसका। उसने चिकन फ्राय से एक टुकड़ा उठाकर मुँह में डाला और उसे लगने लगा मानो,वह चिकन का टुकड़ा न होकर जैसे सुमन्त का मांस हो। नलिनाक्ष ने कहा : अनिरुद्ध,लांग लांग एगो, मैं बहुत दिन पहले एक लड़की को प्यार करता था। सुमन्त भी एक लड़की को प्यार करता था। हरेक लड़का किसी न किसी लड़की को प्यार करता हैं और लड़कियां भी वाइस वर्सा। सुमन्त की प्रेमिका यहाँ से दस मील दूरी पर शहर के कॉलेज में पढ़ती थीगौरी चार फीट ऊंची, बेल-बॉटम पहनने वाली,किताबें छाती से चिपकाए सुमन्त की बस में प्रतीक्षा करते हुए उसने देखा था कई बार।
                  नलिनाक्ष ने पूछा: तुमने अरण्य फसलनाटक देखा है?” अनिरुद्ध के मन के भीतर संचरित होकर इस प्रश्न की प्रतिध्वनि पैदा हुई। प्रतिध्वनि की प्रतिध्वनि इधर-उधर दौड़ती रही। बकरी एक पालतू जानवर। बकरी जंगल का एक पालतू जानवर। जंगल पालतू एक बकरी का। घर एक जंगल पालतू बकरी जानवर। एक जानवर का घर जंगल पालतू बकरी का एक
                नलिनाक्ष ने कहा: कटक से मैं और वह लड़की अरण्य फसलदेखकर लौट रहे थे। मैंने अनुरोध किया,उसकी अंगुली चूमने के लिए। उसने अपने दाएँ हाथ के अंगूठे को मेरे मुँह के अंदर घुसा दिया और मेरे अंगूठे को वह चूमने लगी और आश्चर्य की बात क्या है जानते हो,उसका अंगूठा चूमते समय मैंने किसी प्रकार की उत्तेजना अनुभव नहीं की। एक ठंडी अंगुली उसके नाखून के अंदर का मैल मेरी जीभ पर नमकीन लगने लगा। बस, और कुछ अनुभूति नहीं कर पाया मैं।
            अनिरुद्ध को कोई कह रहा हो जैसे, सोने की खान यहीं कहीं है। संग्राम– ‘अरण्य फसलका हीरो अभिनय छोड़कर सोने की खान क्यों ढूंढ रहा है? सोने की खान? सच में है? कितना इनवेस्ट करना होगा? सोने की खान मिलती है सच में? या सिर्फ खोजते जाना पड़ता है? सोने की सारी खाने सरकार की है,फिर भी अरण्य फसलका संग्राम सोने की खान क्यों खोज रहा था?
                  नलिनाक्ष के चेहरे पर दुःख शोक हताशा के भाव उभर आए। उस दिन से मैं उस लड़की से दूर चला गया, वह मुझसे भी। उस दिन से मैं अकेला हो गया। पूरी तरह से अकेला। लोनली निःसंग।
                  अनिरुद्ध ने सोचा: वह भी एक पालतू जानवर होकर भी सीधे बार-बार जंगल की तरफ क्यों चला जाता है?
                  नलिनाक्ष ने कहा; “कभी अगर नाट्यकार से भेंट होंगी,तो उसे कहूँगा दुनिया में कायर बनकर रहने से ही जीवन का उपभोग किया जा सकता है ? जीवन को सम्पूर्ण भाव से नहीं पाने तक जीवन सुंदर रहता है । पा जाने के बाद नर्क बन जाता है । अनिरुद्ध तुम मुझे समझ पा रहे हो ?”
                  अनिरुद्ध याद कर रहा था सुमन्त की बात को। वह क्या अरण्य फसल’  नाटक देख रहा था? सुमन्त पालतू बकरी की तरह जंगल की तरफ बारंबार जा रहा था?
                  नलिनाक्ष ने कहा: मान लो मैं उस लड़की को कहतामैं उसकी अंगुली को चुमूंगा और यदि लड़की मना कर देती या शरमा जाती या मुझे धमकी देती झूठे-मूठे क्रोध में और मैं जीता रहता उसकी अंगुली चूमने की आशा लिएजीता रहता और उस लड़की को मेरे जीवन में घसीट कर ले आ पाता। वास्तव में लड़की बहुत बेवकूफ थी।अनिरुद्ध पूरा गिलास उठाकर पीने के बाद कहने लगा,साला मेरी भी मौत पेट में चाकू घोंपने से होगी। देखना मैं जिस दिन कायर होकर नहीं रहूँगा,उस दिन पेट में चाकू घोंप दूंगा। बिलीव मी।
                  होटल से बाहर निकलकर चौक के पास गुड नाइटकह कर नलिनाक्ष रास्ते की मोड पर चले जाने के बाद अनिरुद्ध ने महसूस किया, इतने बड़े शहर में मानो वह अकेले इतने लंबे रास्ते पर चल रहा है। उसने स्वेटर नहीं पहन रखी थी और अब जाकर उसने अनुभव किया कि हल्की-हल्की ठंडी हवा उसके सीने में घुस कर अस्थि पंजर के दरवाजे को खटखटा रही है। रास्ते के किनारे बार लाइटें जल रही थी, मगर नहीं जलने से भी कुछ असुविधा नहीं होती। आसमान में बहुत सुंदर चाँद दिखाई दे रहा था। सारा शहर धीरे-धीरे  धुएँ अथवा कोहरे में डूब रहा था। कोहरे के रंग में चंद्रमा का रंग फैलता जा रहा था। अनिरुद्ध के पैर संभल नहीं रहे थे: उसे शीघ्र घर लौट जाना चाहिए क्योंकि नशा उसे जल्दी पकड़ लेता है? नहीं , अनिरुद्ध ने ऐसी भी कुछ बेचैनी नहीं दिखाई। अचानक एक जीप रोशनी करते हुए माइक पर आवाज़ करते हुए चली गई। अस्पष्ट धुंधली-धुंधली आँखों से उसने देखा कि जीप पर बहुत सारे ओएमपी के पुलिस बैठे हुए थे। माइक से प्रकीर्णित हो कर आ रहे बहुत सारे शब्द उसकी समझ में नहीं आ रहे थेकेवल कर्फ्यू’, ‘देखते ही गोली मारोये दो टूटे हुए वाक्य ही सुनाई पड़ रहे थे उसे। रात कितनी हुई होगी? “कर्फ्यू आर्डरजारी हो गया तब तक! कल सुबह सुमन्त की लाश को लेकर प्रोसेशन नहीं किया जा सकेगा तब तो?
                 दो तीन ओएमपी पुलिस वाले लंबी लाठी लिए कलवर्ट पर बैठे हुए थे। अनिरुद्ध ने न तो उनकी तरफ ध्यान दिया और नहीं उन्होंने अनिरुद्ध की तरफ नजर डाली। कोहरे और चाँदनी के प्रकाश में धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए वह अपने क्वार्टर की ओर पहुंचा और सोचने लगा: यह जीवन बहुत ही लंबा, बहुत ही बड़ा है। इस जीवन के भार तले तो कोई भी दबकर दम घुटने की वजह से फॉसिल्स बन जाएगा। साला, जिएगा कैसे? सोचते हुए वह आगे बढ़ने लगा।
                  ऐसे में अपने क्वार्टर पहुँच कर ताला खोलकर वह भीतर चला गया, सीधे शयन कक्ष में जाकर उसने खिड़की खोली। घर के भीतर बहुत गर्मी थी,खिड़की खोलते ही ठंडी-ठंडी हवा घुस आई। खिड़की के उस पार चंद्रमा की रोशनी और कोहरा। कितना सुंदर दिखाई दे रहा था! अनिरुद्ध सोचने लगायह तो बहुत हो गया। जीवन में कुछ मिला,कुछ नहीं मिला। जीवन में सब कुछ पाने का कुछ अर्थ हो सकता है? कुछ तो कायर बन कर रहना ही ठीक है।
                  अनिरुद्ध के नजरें खिड़की की रेलिंग के पास से टकराकर दूर चली गई। खिड़की के कैनवास पर चाँदनी रात मानो एक ऑयल पेंटिग हो। जैसे चाँदनी रात में कोहरे से भीगा हुआ जुलूस, शोभायात्रा,स्लोगन और प्ले-कार्ड के आगे-आगे अर्थी पर सोते-सोते जाने का एक सुख है। एक अद्भुत सुख।उसने आँख बंद कर ज़ोर से सांस ली: सुख ही सुख।

                                 




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