Posts

Showing posts from January, 2011

स्वप्नदर्शी लड़का, प्रधानमंत्री और जगदीश मोहंती

पिछली सदी के आठवें दशक में लिखी गई यह कहानी लेखक श्री जगदीश मोहंती के कहनी संग्रह 'युद्ध-क्षेत्रे एका' में से ली गई है. कहानी में यथार्थ और भ्रान्ति का अद्भुत सम्मिश्रण इसे अलग स्वरूप प्रदान करता है. सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ कलात्मक उत्कर्षता को निपुण ढंग से पेश करने वाली इस कहानी को ओडिया साहित्य में एक मील के पत्थर के रूप में जाना जाता है और साथ ही साथ, भारतीय कहानियों में बहुत ही कम कहानियों को यह दर्जा प्राप्त हुआ है . आशा है इस कहानी का हिंदी साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा . स्वप्नदर्शी लड़का, प्रधानमंत्री और जगदीश मोहंती "हुजूर, माई-बाप, मुझ पर कैसी विपदा आ पड़ी है। कल रात जवान लड़के को पाखाना हुआ। मैं गरीब भीख माँग कर खाने वाला आदमी। डॉक्टर का खर्चा कहाँ से लाता ? सोच रहा था, सुबह होते ही सरकारी अस्पताल ले जाऊँगा। डॉक्टर बाबू के पाँव पडूँगा। क्या कहूँ हुजूर, भगवान बड़ा ही निष्ठुर है। मुझसे मेरा कालिया छीन लिया। सुबह होते-होते बेटे की नाड़ी बंद हो गई। मेरा इकलौता बेटा बिशिकेशन जैसा था, हुजूर। भीख माँग-माँगकर बड़ा किया था। बिन माँ के बच्चे