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कालाहांडी का मानचित्र और बाँझ समय

(लेखक के कहानी संग्रह 'युद्धाक्षेत्रे एका' में संकलित इस कहानी में सामाजिक व्यंग केमाध्यम से हमारे देश की उस समस्या को उजागर किया है , जिन्हें मध्यम वर्ग हमेशा अनदेखी करता है . भूख, गरीबी और पिछड़ेपन के लिए विख्यात 'कालाहांडी' की असहायता को किस तरह हमने और हमारी मीडिया ने मजाक बना कर रख दिया है, उसका जीवंत उदाहरण है.) कालाहांडी का मानचित्र और बाँझ समय मंगलाचरण भुवनेश्वर स्टेशन में उतरने के बाद मैने रिक्शे वाले से पूछा "ओ रिक्शेवाले, कालाहांडी जाओगे ?" रुचि दिखाते हुए रिक्शेवाले ने कहा, "जाऊँगा बाबू, जरुर जाऊँगा, पाँच रुपए किराया लगेगा।" "पाँच रुपए !" मैने आश्चर्य चकित होकर रहा। "बहुत भीड़ है बाबू वहाँ। यह तो आप ओडिया हो इसलिए मात्र पाँच रुपए बोल रहा हू। जबकि दिल्ली, मुंबई और कोलकाता वाले सेठ लोग दस-पन्द्रह रुपए देने तक राजी हैं। कैमरे वाले विदेशी लोग तो पचास रुपए देने में भी पीछे नहीं हटते।" रास्ते में चलते-चलते मैने फिर रिक्शे वाले से पूछा "क्या हो रहा है कालाहांडी में ?" "पता नही बाबू। भयंकर भीड़ लग रही है। सब बड़