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हृदय -सिंहासन

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गोदावारिश महापात्र की मूल कहानी 'हृदय सिंहासन ' की छाया पर लिखी गई लेखक की यह कहानी अपने आप में एक मिसाल है. बदलते मूल्यों तथा आधुनिकता के प्रभाव से ओत-प्रोत समकालीन मानवीय वैचारिक संकटों को उजागर करनेवाली यह कहानी लेखक के कहानी संग्रह 'बीज-बृक्ष -छाया' में संकलित है.आशा है यह अनुवाद हिंदी पाठकों को पसंद आएगा . "जा रहा हूँ पारो, चिट्ठी लिखूँगा।" यह बात सूनाखला का गतिनाहक गत शताब्दी के चालीसवें दशक में पारो को कहकर गया था। वह एक साल के लिए कहकर गया था, मगर डेढ़ साल के बाद लौटा था। जिस अंधेरी रात को वह घर लौटा था, उस रात मूसलाधार बारिश हो रही थी। घर लौटकर उसने क्या देखा ? रहने दीजिए उन बातों को। उन बोतों की पुनरावृत्ति करने में क्या लाभ ? उस दिन के बाद धरती पर कम से कम बीस से पच्चीस हजार बार सूर्योदय तथा सूर्यास्त हुआ होगा। कितनी मूसलाधार बारिश वाली रातें बीती होगी। उड़ीसा राज्य ने कितने तूफान, चक्रवात, दुर्भिक्ष, अनिवृष्टि तथा अनावृष्टि को झेलने का अनुभव प्राप्त किया होगा ! कितने उत्थान-पतन, स्वतंत्रता , वोट, गणतंत्रता, प्र