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अलबम (भाग-1)

अलबम चेहरे पर आयु का बोझ।कमर थोड़ी झुकी हुई।आँखों पर चश्मा , ललाट पर रेखाएँ साफ दिख रही है।गंजा माथा। चेयर पर बैठे हुए।पीछे की ओर दीवार। दीवार पर टंगी हुई कैलेंडर के   कुछ हिस्से फोटो में आ गए है।फोटो पिताजी की है।उसके नीचे लिखा है- श्रीयुत नगेंद्रनाथ महांती , मैंने उस नाम के पहले लिख दिया “ स्वर्गीय ” ।       घर के अंदर अब भी बिछौना बिछा हुआ है खाट पर। लाल चादर बिछा दी गई थी। पैर के पास रजाई थी , मगर ओढ़ी हुई नहीं थी , तकिए में गड्ढा हो गया था- उनके माथे के निशान अभी भी है , पान का बटुआ और बेंत की लाठी भी है। जैसे उन्हें बिछौने से उठा ले गए थे , चले गए चुपचाप बिना किसी प्रतिवाद के।       कुछ दिनों से बुखार था।डाक्टर बुलाया गया। परीक्षण के बाद पता चला ‘ टाइफ़ाइड ’ । कुछ कैप्सूल दे गये। बुखार छूट गया। उस दिन नहा-धोकर भात भी खाए थे। दिन के तीन बजे गाँव की तरफ घूमने निकले थे।इस साल आम अच्छा हुआ है , इसलिए फसल भी अच्छी होगी , गाँव के हलवाई मधुसाहू को कहा था और चार बजे वापस आकर माँ से कहा कि दिन-भर पेशाब नहीं हुआ है और यह कहकर   पेशाब करने चले गए , पर पेशाब नहीं हुआ। आहिस्ता-आहिस