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माँ के लिए घर

दो बेडरुम वाले क्वार्टर का एक लाभ यह था कि माँ के लिए अलग से एक रुम मिल जाता । ऐसे भी माँ बेचारी बहुत हैरान हो रही थी। हमारे पुराने वाले मकान में केवल दो रुम हुआ करते थे , एक ड्राइंग रुम तो दूसरा बेडरुम। थोड़ी सी जगह खाली भी थी , जिसे डाइनिंग रुम का नाम दिया जा सकता था। उसी खाली जगह में हमारा डाइनिंग टेबल पड़ा हुआ था तथा बेडरुम हमारे सोने के काम में आता था। रात के समय माँ ड्राइंग रुम में दीवान के ऊपर सोती थी । अगर कोई अतिथि आ जाता था तो बहुत मुश्किल हो जाती थी। जब तक अतिथि ड्राइंग रुम में रहते थे , माँ बेडरुम में बैठकर अपना समय पास करती थी। उनका कोई अपना निजी रुम नहीं था। दो बेडरुम वाला क्वार्टर मिल जाने से अन्ततः एक रुम माँ को मिल जाता। वह रुम माँ का अपना निजी रुम होगा। उसमें उसका अपना बेड लगा होगा , वह वहाँ अपनी इच्छानुसार सो पाएगी। अगर घर में कोई मेहमान आ भी गया तो उसे अप्रतिभ होकर इधर-उधर छिपने के लिए जगह नहीं खोजनी पड़ेगी। घर के कोलाहल से दूर वह अपनी पुराण-पोथी अपने निजी रुम में रख कर पूजा-अर्चना करके अपना समय बिता सकेगी। माँ का क